________________ S5I015125510505125 विधानुशासन POSTSIDISTRISTD35015 जो पुरुष गुरु के उपदेश से इस शास्त्र को पूर्ण रुप से हृदय में धारण करके बहुत प्रकार के श्रेष्ठ मंत्र यंत्र और औषधियों से छहो कर्मों को जानता है वह पंडित श्रेष्ट मांगने वालों के सब प्रयोजनों को पृथ्वी में कल्पवृक्ष के समान पूर्ण करता है। यावत् जैन पद द्वयं भवभूताः मुच्चाटयत्यापदां, यावल्दव्य जनस्तनोति निपुणः सिद्धीवंगना कर्षणं तावत सुदचि शारगं ममलं शेयाविटं पटियागं गंभीरे मति सागरे पृथुत्तरे विद्या सरित्संगते // 138 // जब तक जिनेन्द्र भगवान के चरण कमल संसारी जीवों की आपत्तियों का उच्चाटन करते हैं तब तक भव्य पुरुष मुक्ति रुपी स्त्री का आकर्षण करते हैं तब तक यह अच्छे रुचियों का शास्त्र रुपी रत्र जो मति सागर जी आचार्य द्वारा रचा गया है वह मंत्रियों के गंभीर (मति) बुद्धि रुपी सागर (समुंद्र) अथया उसकी महान विद्या रुपी नदी में स्थित रहे। "इति" | इस ग्रन्धको युवाचार्य श्री 108 मुनि गुणधरनंदीजीने अहमदाबाद के 1996 के वर्षायोग के समय पूर्ण करके प्रकाशित कराया। इस ग्रन्थ का विमोचन 15 फरवरी 1997 को श्री पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर पूज्य 108 गणधराचार्य कुन्धुसागरजी एवं आचार्य कनकनन्दीजी के संघ एवं सकल समाज की उपस्थिति में किया गया। MಳದNESS{{e}ಣದಂಥದಧಾಥ