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PSPSPSPSPSPS विधानुशासन 2695959
वालायाः शक्र वल्या वा रसेन रसनां चिरं कृक्तांस्तारणा द्याम मद्यात कंडुर्भजायते
॥ १३२ ॥
(बाला) नारियल नेत्र बाला या शक्करवली के रस के साध जीभ को भिगोकर तरण आदि को खाने से खुजली नहीं होती है।
चिरं कोरंड़ पत्राणि जग्ध्वास्तत्या शिताग्रया, विध्देत्कपोल मोष्टं चनास्त्रश्रावन चव्यथा ||
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१३३॥
कोरंड़ (कटसरया) के पत्तों को खाकर यदि तेज छूरी से अपने गाल होंठ या नाक आदि को काटे तो न तो रुधिर ही निकलता है और न कर मालूम होता है।
स्थित्वानि कनकास्थिनि याम मामलकांऽबुभिः, नवनीत मया नीवं जायते मृदुतागुणात्
॥ १३४ ॥
खड़े हुए धतुरे की गुठलियों (बीजों) को एक पहर आंवले के पानी में भिगोने से वह मधुवन के समान मुलायम हो जाती है।
पुष्यार्थे ष्तुर क्षुरत् छद पत्रित युक्तं श्शरोऽपि, वालेन मुक्तो रोहित कंटक गर्भ लक्ष्यं ध्रुवं विद्येत्
॥ १३५ ॥
पुष्य नक्षत्र में क्षुर (गोखर) से लेप किया हुआ कांटे • युक्त बाण छोड़ा जाने पर निश्चय से अपने निशाने का भेदन करता है।
उदीरितं नर्म विधान मेतद्यथादेशं निखिलं विजानन्,
ततं प्रोयगं विरचय गूढ़ लोकस्य कौतूहल मात नातु ॥ १३६ ॥
यह नर्म विधान का वर्णन किया गया है उसके उपदेश को ठीक ठाक जानकर उस प्रयोग को करके मंत्र लोक को आश्चयान्वित करे ।
शास्त्रं येन घृतं हृदी दम खिलं ज्ञात्वो पदेशा द्गुरो:, षट् कर्मण्यि वचोदयवसुबहुभिः समंत्र यंत्रो षयेः ॥ अर्थात् सोर्थि जिनाय नित्य मरिवलं विश्रायन् भूमौ कल्पतरु पते बुध जन स्तुतयः स्व शक्तयाद्भूतः ॥ १३७ ॥
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