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विद्यानुशासन
॥ १२६ ॥
क. सूचित भूकंद दल बद्धा पिपलिका म्रियते, जीवति शारया वा चिंचा पावादलै वैद्धा हाथ से मले हुए भूकंदब के पत्तों में बंधी हुई चींटी मर जाती है और वही इमली के पत्तों में बांधी जाने से जीवित हो जाती है।
त्यक्त प्राणो मीनः स्नेहना रुष्करास्थि जातेन लिप्तः, सलिले क्षिप्तः प्रत्यागत जीवन स्ररति
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॥ १२७ ॥
मरी हुई मछली पर अरुष्कर की अस्थि (मिलाए को गुठली के तेल का लेप करके उसे पानी में डालने से वह जीवित हो जाती है
आंजल बीजैरभोवा मिश्रितं घूर्वितं करेण ततः, आलक्ष्येत चलद्धि कृमिभिः परितः परालमिय
॥ १२८ ॥
आंजक बीज को (अंज) जल के साथ हाथों पर लेप करेके उसे देखने से चलते हुए बहुत से गीड़े दिखाई देने लगते हैं ।
क्षीरेण भावितैः शुष्कैः कपित्थफलरेणुभिः, करं वित्तेर्पितं तकं कुंभ गर्भे भवेद्बहिः
॥ १२९ ॥
दूध की भावना दिये हुए कैथ (कपित्थ) के फल के चूर्ण से पुते हुए घड़े में जाला हुआ मट्टा फौरन बाहर निकल आता है
कर्णिकार प्रसूनानां चूर्णेन कृत मिश्रणं, कथितं दुग्धमाज्यस्य तुलां वर्णेन गछति
॥ १३० ॥
कर्णिकार ( कनेर के फूलों के चूर्ण को बकरी के साथ बना हुआ क्वाथ तुला (उसी) के वर्ण का हो जाता है ।
भद्रा धूक्योर्मूलमास्ये संस्थाप्य चर्वितं पांशुभिः, पूरी नेत्र भक्षयेच्च शिलां
सितां
॥ १३१ ॥
भद्रा (रायसण- पीपल - अनंत मूल कायफल- पसरन - कंभारी- गूलर) और वंधूक (दुपहरया पुष्प - पीले साल का वृक्ष की जड़ों को मुँह में चबाकर उसकी धूल को आंखों में आंजकर मेनसिल और शक्कर को खा सकता है।
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