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________________ PSPSPSPSPSS विधानुशासन बीजानां वीजपूरस्य ताम्र भाजनसंस्थिते तैलें, दिवा विलोक्ये रण सः सूक्ष्मा अपि तारका ॥ ७२ ॥ जो पुरुष (बीजपूर) बिजोरे के बीजों के तेल को ताम्र के बर्तन में रखकर उसमें तेल डाले तो वह दिन में तारों को तथा सूक्ष्म वस्तु को भी देख सकता है। राजी तैल शिला ताल भूलता लिप्त विग्रहः, निशऽधकार पूर्णयां द्रश्यते प्रज्वलद्वपुः S‍SPA ॥ ७३ ॥ (राजी) राई तेल मेनशिला हरताल और (भूलता) का शरीर (विग्रह) पर लेप करने से रात के पूर्ण अंधकार में भी शरीर प्रज्वलित जलता हुआ सा दिखाई देता है । ॥ ७४ ॥ आलक्तक शिला ताल कुची तरु सर्ज सैंधवः, लिखिता एयऽक्षरा एयुच्वः प्रकाशते नमस्यपि (महार) से (कुरी) (शाल) सेधवा नमक से लिखे हुए अक्षर आकाश (नभ) में भी बहुत प्रकाशित होते हैं । वृतिः सम्यग्मंत्रितं पारद गर्भैक भाग पर्यंता, प्रज्वलदधः कृते तर भागे व्योमनापत्ते दूरं, प्रज्वलयति दशामधस्थां शशि विद्भार्भा प्रशांत दीप शिखां, उपरि स्थित प्रदीपोवरयूधूमेन बहलेन ।। ७५ ।। एक भाग पारा सहित अच्छी तरह मंत्रित की हुई बत्ती को जला कर नीचे करने से वह आकाश के दूसरे भाग में दूर गिरती है। दीपक की लौ को बंद होने की हालत में यह चंद्रमा की तरह नीचे की तरफ झुकी हुई भी जलती है और ऊपर ठहरी हुई धुँआ बहुत ज्यादा रोशनी हो जाती है। दीप दशा मूर्द्धस्थां शामित ज्वाला म धस्थिता, दशा शमल गर्भा ज्वालिता ज्वलयत्या रक्ष्यो रुधूमेन ॥ ७६ ॥ दीपक की बत्ती की आग बुझाकर उसमें (शमल) गोबर मिला कर ऊपर रखकर जलाने से वह भारी धुआं निकालती हुई जलती हैं। दीपः प्रशांत ज्वार्लेपि समुज्वलति तुतक्षणत, गंधकां शम परागेन करें वित दशोऽनलः ॥ ७७ ॥ बुझा हुआ दीपक भी गंधक और अशम () के पराग (राख) से बत्ती को लपेटने से उसी क्षण जल जाती है। PSPSPAP 50/१०९१ PPP 95955X
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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