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________________ SSCI5DISISISTRI5015 विधानुशासन A505015121510151015 अन्यचाभक लिरिवतं गह मध्यार्ग तैल भरित घट मुख निहितं, रूपं गर्ह रंधागत तपनांच स्पष्ट मीक्षिते नमसिचिरं मुकरे ॥६६॥ यदि अभक के ऊपर रुप को लिखकर उसको घर में मुख तक तेल से भरे हुए घड़े के ऊपर रखा जाए तो उसके ऊपर घर के छेद में से सूर्य की किरण के आने पर वही रुप आकाश में दर्पण के समान दिखलाई देता है। शिरिव शिरिव लिप्त सघन सलिल भरित कुंड़े पतितः, गृह विवरेणार्ककरैः छुरितं रुपं विलोकयते गगन तले ॥६७॥ (शिखि शिखा) म.पू शिला से लियास जस से मरे हुड़ में घर के (विविर) (सूराख) से आई हुई सूर्य की किरणों को (हुरित) सजाने से वह रुप आकाश में भी दिखलाई देता है। यः शिरिवपित्त विलिप्तो रवः पुरः स्थापित रुप मुकरस्याद:, धर्मे स भाति भानोः स्वर्भानु गृहीत इव समीप स्थानां ॥६८॥ जो मोर के पित्त से अपने को लीप कर सूर्य के सामने रखकर आधी धूप मैं बैठता है वह पास वालों को सूर्य का ग्रहण किये हुए के समान दिखलाई देता है। कपि चर्मा वत वंदना चंद्र ग्रहणं जलांतर निमग्ना, पात्री कुरुते तत्स्थित करंज तैलाक्त दश दीपाः ॥६९ ॥ यदि कोई स्त्री अपने मुख को बंदर के चमड़े से ढक कर जल के अंदर घुसकर अपने पास करंज के तेल के दस दीपक रखे तो वह चंद्र ग्रहण का सा द्रश्य दिखलाई देता है भेयाः प्रदीप कर्भायाः छन्न माज कपि त्वचा, गृह मध्योर्पित कुर्यात् लीलामिदोर्द्धवं निशिः ॥७०॥ यदि किसी (नकाश) के भीतर दीपक रखकर (अज) बकरा (कपि) बंदर की खाल से ढककर घर में रखा जावे तो वह रात में चंद्रमा की लिला करता है। पुष्पार्क मुनि पुष्पांबु पिष्ट श्रोतोजनेन यः, आक्त नेत्रः सः वीक्ष्येत नक्षत्राणि दिवा स्फुट ॥७१।। जो पुरुष रविवार सहित पुष्य नक्षत्र में (मुनि पुष्पांबु) अगस्ता के फूलों के रस से पिसे हुए श्रोतांजन (सुरमे) को आंखों में लगाता है वह दिन में भी तारे देख सकता है। SHRIDDISTRICTORISISTE१०९०%501STRISADISTRISTOIEDIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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