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ORIDIOSDISTRISTR5 विधानुशासन PATIDASISIPEDISTRIES
वत्ती दीप्तान्त तैलोक्तान रासग्माविता, षद्दनं लोह भांजनां विदधाति पस्परं
।। ७८॥ यदि मनुष्य के तेल की बत्ती को मनुष्य के खून में भावना देकर घर में जलावे तो बर्तन आपस में लड़ने लगते हैं।
समुन्द्र फेन सहितैः सज सिक्थक गंधकैः, पक्कं वर्ति गतं तैलं प्रदीप ज्वलेय जले
॥७९॥ समुंद्र झाग (सर्ज) साल सिक्थक (मोम) और गंधक से पकाए हुए तेल में बत्ती डाल कर भी जल में दीपक जलता है।
श्लेष्मांतक तरुत्वेन नियासेन विनिर्मिता,
विनाऽपि स्नेह सिक्थेन ज्वलत्यंभ सि दीपिकाः ॥८ ॥ श्लेष्मांतक तरु (लिसोड़े) के पेड़ को निर्यास (काठे) से बनी हुई बत्ती बिना तेल के भी जल जाती है।
तरुणां क्षीरिणां क्षीसै वतयोः परिभाविता, शराबे पूरिते णोभिन्निहितः प्रज्वलत्यलं
||८१।। बत्तीको दो शरोबों में रख कर जलाने से जल में जलती
वर्ति मदन गर्भण वस्त्र खंडेन निर्मिता, प्रज्वले जल मटोपि स्नेह से काइते चिरं
||८२॥ मदन (मेनफल) युक्त यस्त्र के टुकड़े से बनी हुई बत्ती बिना तेल के भी जल में जलती है।
शिरवा कोशाम तैलाक्त वत्तें दीपस्य.
भास्वरा शक्यते मरुतां कातैन कंपातु मुल्वणे ॥८३॥ शिखा (मयूर शिखा) कोश (अंडा) आम के तेल में भीगी हुई बत्ती के दीपक को बड़ी बड़ी आँधी भी नहीं बुझा सकती है
वर्ति के हेम तैलाद्र लांगलि चूर्ण गर्भिणा,
जनटो ज्वालिता नीला कंकेली स्तवकं श्रियः CSDESISTOISIST ER०९२PIRIDISTRISTRISTRISTOTSIDS
।।८४॥