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SAMRIDDISTRIOTRIOTE विधानुशासन P505CTRICISISTERIES
यूँ बीजं लिरव वह्नि संपुट पुरेषट्कोण मध्ये तथा नाम्ना सांतरित विलिरव्यं यपरं पिंड समंतादहि: कृत्वा मृतिकया चतुष्पथ प द्वारादि संभूतया स्त्री रुपं पर भूजक विलिस्तितं यंत्रं हदि स्थाटत
॥७॥
त्रिकोण कुंडोपरितां विवर्तयेत तिलाज्य धान्यैः, लवणाज्य दुग्धौः खदिराग्नि मध्येजुहुयात् त्रिरात्रं स्व वांछिता मानयतीह नारी।
॥८॥ अग्नि मंडल के संपुट के छहों कोण में यूं बीज लिखकर, मध्य में भी इसी बीज को नाम सहित लिखे। फिर चारों तरफ यपर पिंड यूं से वेष्टित करे। फिर वांछित स्त्री के रूप को (मूर्ति) को चतुष्पथ (चौराहे) या नृप द्वारा (राज द्वार) की मिट्टी से बनाकर और इस यंत्र को भोजपत्र पर लिखकर उस मूर्ति के हृदय में रख दे। फिर तीन रात तक त्रिकोण होम कुंड में तिल आज्य (घृत) धान्य नमक और दूध की खादिर (खेर) वृक्ष की अग्नि में आहूतियाँ देकर होम करे , और उस कुंड पर उस मूर्ति को घुमावे तो अपनी इच्छित स्त्री का आकर्षण होता है।
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CASIOTICISTRISTOTSPOTTER०६२ P505PISORTOISTERIES