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ह्रां ह्रीं सुवीजदिक पंच वर्णोरोकार पूर्वे रथबौषडंते
करोतु नाम ग्रहणेन होमं संध्यासु तद्रोह मुखोपविष्टः
॥ ९ ॥
ह्रीं ह्रूं ह इन पांच बीजों को आदि में हैं और अंत में संवौषट् लगाकर स्त्री का नाम लगाकर संध्या के समय उसके घर की तरफ मुख किये हुये बैठकर होम करे ।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्रः अमुकं आकर्षय आकर्षय संवोषट् मीतं नाम तं द्विरेफ सहितं बाये कला वेष्टितं, तद्वाह्येऽग्नि मुरत्पुरं विलिखितं तांबूल पत्रोदरे,
॥ १० ॥
लेखिन्या पर पुष्ट कंटकतु चार्क क्षीर राजी प्लुत तप्तदीप शिखाग्नि त्रिदिवसेरंभा मपिहानयेत्
॥ ११ ॥
नाम सहित मांत (य) को दो रेफ (र) सहित करके उसके बाहर कला (१६) स्वर वेष्टित करे उसके बाहर अग्निमंडल और मुरत्पुर (वायुमंडल) बनावे, इसे तांबूल पत्र पर आक के दूध और राई के तैल से, पुष्टि असंगध के कांटे (कलम) से लिखकर यदि तीन दिन तर क्षपक की शिखा की अग्नि पर तपावेतो रंभा (अप्सरा ) को भी खींच लावे |
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