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________________ DICTDPISIRISTOTSIS विद्यानुशासन PSIRISTORSCISIOISSIS यो मंत्रयति गोर्यस्याऽनासिका विवरांतरे यावज्जीवं भवत्येवसा तस्य वश वर्तिनी ॥३२९॥ इस मंत्र से जो कोई भी गाय की नाक के छेद में मंत्र जपता है। वह गौ जन्मभर तक उसके वश में रहती है। बचा सिद्धार्थ मरिच कुष्ट क्रमिजिद्दज़ुकैः छाग मूत्रेण संपिष्टै गौवन्याक्त द्रग्भवेत् ॥३३०॥ बच सफेद सरसों काली मिर्च कठ कृमिजित (अगर) और अर्जु क (बावची) को बकरी के मूत्र में पीसकर आंखो में लगाने से गौ वश में हो जाती है। विशेष प्रयोगश्च लिस्टयते इति कथिते वश्य विधौ सवों, मंत्रश्च सर्वयंत्रश्च स्थावर जीवांग कृतं तंत्रं चाहु शुभानि बुधाः॥ यद शुचिभिश्च जीवांगौ वाच्यां मिश्रमन्न भक्षाद्यां तंत्रं कथितं गुरवास्तदा मनत्य शभु देशीयं, मंत्री श्रुभ प्रयुज्यादि हो क्तया वश्यायाः।। शुभा शुभटो नैवा शुभं प्रयुज्यगत् कुर्याद् अभंनदिग्मात्रं, विन्मूत्रार्तव कुक्षिजंतु मधुभिः श्वादिष्ट रवणादिक प्राणय गैरिवी मिश्रती उषध गमाद ।।। दुर्वण्य तंत्रेषु सज्जनः स्वव्रत शील शौच करूणा मेधा जुगुप्सा च्युतविभ्याः कुत्सित वश्यं तंत्र निरतं वश्याजनं न स्पृशेत् ॥ इति वश्य विधानं द्वाविंश समुहे. इस प्रकार वश्य विधान में सब मंत्र यंत्र में स्थावर जीवों के अंग से बने हुये तंत्रों का वर्णन किया गया है उनको पंडित ने अच्छा कहा है। किन्तु जो चर जीवों के अंगों से मिलाकर खाने आदि तंत्रों का वर्णन किया गया है, उसको गुरूओं ने अशुभ कहा है। मंत्री को चाहिये कि यह इनमें से केवल शुभ तंत्रों ही का प्रयोग करे अशुभ का कभी भी प्रयोग नहीं करे। व्रत, शील, शौच दया और बुद्धि से युक्त जैन पुरुषों को चाहिये कि वह घृणा सहित विष्टा मूत्र ऋतुधर्म के रज को खंजतु शहद कुत्ते सर्प वंगर (रगधातु) और प्राणियों के अंगो से मिली जुली औषध वाले निंदित वश्य तंत्रों और वश्य अंजेनों को धर्म से डरता हुआ कभी न करे । S5I0505105250505१०६०PISIOSIOTICISEXSTORIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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