SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1063
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ S 2 たらたらわすためにhe's faengelled ちにちやらゆらち पूग (सुपारी) को कैथ के रस में तीन दिन तक भावना देकर उसमें कुत्ती का दूध और अपना मूत्र मिलाकर दे तो जन्म भर वशीकरण करता है। विष मुष्टिक कनक हलिनि पिशाचिका चूर्णमंबु देह भवं उन्मत्तक भांग गतं क्रमुक फलं तद्ववशी कुरुते ॥ ३०८ ॥ विष मुष्टि (कुचला ) कनक (धतूरा ) हलिनां (कलिहारी) पिशाचिका के चूर्ण और अंबु देह भव (कमल का रस ) को उन्मत्त (धतूरे) के बर्तन में रखी हुई सुपारी वर्गीकरण करती है। मनुमती नृप जारी देव्यः शरपक्ष सप्तषड्भगा हत्या तच्चूर्ण पुन रुक्मत्तक भाजने क्षिप्त: ॥ ३०९ ॥ अश्रुमती (क्षेत्र जल) पांच भाग नृप (ऋषंभक) दो भाग जारी (पुतंजारी = त्रायमाण) सात भाग देवी (सहदेवी) छह भाग को लेकर उनके चूर्ण को उन्मत्त (धतूरे) के बर्तन में डालें। पूग फलान्यथ तस्मिन् भाव्यानि निधाय मूत्रतः स्वस्थ उत्तानि जगति भवेति माह शास्त्राणि ॥ ३१० ॥ उसमें अपना मूत मिलाकर पूग फल (सुपारी) को भावना दे। इसको देने से यह संसार में काम के अस्त्र और शस्त्र होते हैं । कृष्ण भुजंग भवक्रे क्रमुक फलानि श्रुम दिने निक्षिप्य ततः गोमटा लिप्तं संस्थाी एकांत शुभ दिना ॥ ३११ ॥ नान्यादाय दिने स्त्रिभि रथ कनकज फल पूटे समा स्थाप्य गिरि कर्ण केन्द्र वारुण्य नल हलिन्यागता चूर्णे ॥ ३१२ ॥ मंदार श्रुनी क्षीरैः स्व मूत्र सहितै विभावयेत्सदृशः, कुलिको दा शनिश्चर वारे कनके धनी छाग्नी ॥ ३१३ ॥ गुंजा सुंगधि का कनक बीज चूर्ण हि कृति तिल तैले:, उध्दु षितानि भाजनविवरेण नंग शस्त्राणि ॥ ३१४ ॥ किसी अच्छे दिन स्वयं मृता अपने आप मरे हुए अहि मुख सर्प के मुंह में क्रमुक फल (सुपारी) डालकर, उसको किसी गोबर से लिपी हुयी एकांत और उत्तम स्थान में रखे | उसको तीन दिन बाद こちとらわすね १०५७/5/ Pa
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy