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________________ CASTO5CISIOSCTRICT विद्यानुशासर BASIRIDICTSICISCIRCISI गोरमा सहदेवी सुगंधिका नाग केशरै र्युक्तं लवणं निजमल मिश्रं वश्य करं भोजनं देयं ॥३०२ ।। गोरमा सहदेवी सुगंधिका (नगद याबची) नाग केशर सहित नमक में अपने मल मिलाकर भोजन में देने से वशीकरण करता है। विकति कृतांजलि लज्जा रवि मूल विलिप्र भाजने क्षिप्रा कपिला गोदधि वश्यं ग्रहणे ष्वां जन्म विदधाति ॥३०३॥ विकृति (शुद्ध किया हुआ) कृता (भोजपत्र) अंजलि (लजालु) लजयंती अर्क की जड़ को साफ बर्तन में कपिला गाय के दूध में मिलाकर ग्रहण में खिलाने से जन्म भर के लिए यशीकरण होता है। पित्वोद्रीण क्षीरं पुष्प फलाभ्यंतरे दधि कर्यात तद् घृत तत्र फलानि स्युर्वश्यायान्नमिश्राणि ॥३०४ ॥ दूध फूल और फल को और दही को पीकर उदीर्ण (उलटी) किये हुए को एक बर्तन में रख दे उसमें रखे हुए फल को खिलाने से वशीकरण होता है। तकेत्थिन्न समूल तूल कनक क्रोध श्रितान् वीरतः संजातेन विलिप्टा गोत्र मरिवलं मास्तर्दुद्वा ॥३०४ ॥ तत क्षिपा हेम फले मलं क्षिति गतं मूत्रेण संभावितं भक्तादोत् वितरे दिदं निगदितं स्त्री पुंस वश्य बुधः ॥३०५।। मड्ढे से निकली हुई धतूरे की जड़ और फल के क्वाथ को दूध में मिलाकर अपने शरीर में मले। फिर उसको उड़द की पिष्टी से उतार कर उसमें धतूरे काफल अपना उतरा हुआ मल और मूत्र मिलाकर भोजन आदि में दे तो वह स्त्री और पुरुष दोनो को ही वश में करता है। भावोत्क्रमुक हाथं शून्यो दुंबर दुग्धतः खुनी दुग्धं स्व मूत्रेण जन्मांतं वश्य कारीतत् ॥३०६ ॥ क्रमुक (सुपारी) के काथ को निर्जन स्थान के उदम्बर (गूलर) के दूध में भावना देकर उसमें कुत्ती का दूध और अपना मूत्र मिलाकर पिलावें तो जन्म भर वश में करता है। पूगं कपित्थ नियास भावितं दिवस त्रयं श्रूनो क्षीरात्म मूत्रेण जन्मान्तं वश्य कद भवेत् CASCIETOISTRISTOISTORIER०५६PISSISIOSCIEDIEPISCEN ॥३०७॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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