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CISIOI5015015015125 विधानुशासन 20505PISOTICISIOS
एरंड कनक भक्तक रसेन दिवस त्रट पथक कष्ण तिलः
प्रेष्यो शूनी पोनिज मूत्रेणानंग जय बाणः ॥२९५ ।। एरंड़ धतूरा भक्तक (पकाए हुए चावलों का मांड) में अलग अलग काले तिलों में श्रूनी (कुत्ती) का पय (दूध) और अपना मूत्र कामदेव को जीतने के लिए बाण होते हैं।
उन्मत पंच पत्रक त्रिकणंगर सैंघवेन संमिश्र
मातंग वारि युक्तं तैलं जिमूत्र तो वश्य ॥२९६॥ उन्मत्त (धतूरा) पंच पत्र (पाँचों पत्ते) त्रिक (त्रिफल) णागर (नागर मोथा) सेंधा नमक को मातंग (हाथी) का वारि (जल) मूत्र सहित तेल और अपने मूत्र का सेवन वशीकरण करता है।
कर मनु दिग क्षि भागाजारी गोराज मोहिनी देव्यः
पिष्ट गलाज्य नियक्ता निर्दिष्टा वश कतो जगतः ॥२९७॥ करमनु (करंज) दिगदि भाग जारी (त्रायमाणममीरन) गोराज (गोरोचन) मोहनी (पोदीना) देव्या (सहदेवी) को पीसकर गुड़ और घी में मिलकार सेवन कराने से संसार को वश करने वाला बताया
रुद्र जटा सितगुंजा लज्जारिका सन्निधाय सांस्टये दिवसै नि भिरादाट प्रचूर्णय पेयाः स्व पंच मलैः ।
॥२९८॥
गो मय विलिप्त हिलिनी कंदेः परि भाव्य पाचर्य
द्विधिना चूर्ण मिदं सकले जगदवश्य करं काम वाणारख्यं ॥ २९९ ॥ रुद्रजटा (जटामासी बाल छड़), सफेदचि, हमी. लजालू को तीन दिन तक सस्ये (सर्प के मुख में) रखकर उसके चूर्ण में अपने पांचों मल मिलाकर रखे । फिर उसको गोबर लिपटे हुए हिलिनी कद (लांगली कंद) में विधि पूर्वक पकाए तो यह काम बाण नाम का चूर्ण संसार को वश में करता
रक्तकर वीर विकृति द्विज इंडी वारुणी भुजांक्षी लजरिका गो बंध्यान्येत वटिका प्रकृति वहु ॥३०॥ कटिका भिः सहलवणं प्रक्षिप्य सुभाजने स्व मूत्रेण परिभाव्यः
पंचेत् पश्चातल्लवणमिदं भवन वश कारि ॥३०१।। लाल केनर शुद्ध की हुई (ब्रह्म इंड़ी = उटकराला)वारुणी (मदिरा) भुजं गाक्षी (सर्पाक्षी) लजाल गो वंध्या (गोभी) को बहुत सी गोलियां बनाए, इन गोलियों को एक उत्तम बर्तन में नमक और अपने मूत्र सहित डालकर विधिपूर्वक भावना दिया हुआ यह नमक जगत को वश करने वाला है।
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