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________________ STERSICISTRISTRISTO75 विधानुशासन VIRECISIOTECISION स्व वीर्य विजमूत्र मलोदर कमिश्र जिकिका हरित मदे विमिश्रि प्रदीटाभानैः रसनादिषु क्षणादनिहशा विश्व वशीकृतिं भवेत् ॥ २८८॥ हन सित कुष्ट माहिषं मांसोदर जन्म कीट वर तैलैः भक्ष वितीर्णैरभिमत जन संवननं बुधाः प्राहुः ॥२८९॥ गोरमां मोहिनी जारी केकि चूड़ा कतांजलिः दत्ता स्वन्धत भान्न पानादि वशयेन्मल संयुता ॥२९ ॥ गोरमां मोहिनी (पोदीना) जारी (पुतंजारी = आयमान ममीरन) के कि चूड़ा (मटूरशिखा) कृति (भोजपत्र) अंजलि (लजालू) और अपने मल को मिलाकर देने से वशीकरण करता है। स्मशान भंगरजिन मदं पंच मलैर्युतः प्रदत मन्त पानादि सर्व संवननं मतं ॥२९ ॥ श्मशान में उगा हुआ शृंगराज मद (धतूरा) अपने पांचों मलों, अन्न पान आदि में मिलाकर देने से सबका वशीकरण होता है। स्वकीय क्षतज श्रोत मलाभ्यामशनादिकं मिश्रं विश्राणितं नारी नरा नप्या नोदवशं ॥ २९२।। नाशय जंया सितसूर्य विल्व सहकार मूल कत चूर्ण जगतां वश कन्निजां मल पंचको पेतः ॥२९॥ नाशय जंधा (काक जंपा) सित (सफेद) सूर्य (आक) बिल्व सहकार (आम) की जड़ का किया हुआ चूर्ण अपने पांचों मलों सहित जगत को वश में करता है। रक्त कपिला रेसा क्षित करवीर रसाद कृष्ण तिल चूर्णः भौमोदयेंदु युलो निज मल मिश्री वशी कुरुते ॥२९४ ॥ मंगल के उदय होने पर, चंद्रमा के युक्त होने पर, रक्त (लाल) कपिला गाय का दूध और सित (सफेद) केनर के रस में गोले किये हुए काले तिलों के चूर्ण में अपने पांचो मल मिलाकर खिलाने से वशीकरण होता है।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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