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________________ SSOTECISIRSTOR5105 विधानुशासन ASSISTOISTOISSISTOISS पितं मत्सस्य विष्टा च कपोतस्य वि चूर्णित मूर्द्धिन स्त्रीटाः पदं पुंसां यत्रे रंजयेत् परं ॥ २८१॥ स्व पच मल संयुक्तं रर्प मस्तक धूपितं वस्त्र माल्य विलेपादि वित्तीर्ण वश्टो ज्जनं ॥ २८२॥ कपि सेफ रजो रेतो भवितं कुसुमेर्धितं आयातं सुरभौ यद्वा भोज्यमित्रं वशीकरं ॐ नमो मोहनीये सुभगे लिलि ठः ठः ॥ २८३॥ जमानेन कुरंटक शसिरै हिम कांत भुजग केशर वक्रात निज पंचमलोपंतान दद्यादन्नादि मिश्रितं वश्यार्थ ॥२८३।। इस मंत्र से अभिमंत्रित किये हुए कुरटंक (पिथावासा) हिम कांत (कपूर) भुजवा केशर (नाग केशर) वक्र (तगर) और अपने पांचों मलों सहित अन्त आदि में मिलाकर देने से वशीकरण होता तगर मेह मूनिं गोप कन्यां रुजामपि दद्यादात्में दियो पेतान् स्याद वश्यं वशीकृती: ॥ २८४॥ तगर अहि मूनिद (सर्प का सर) कोप कन्या (गोप चंदन) रुजा (कूठ) और अपनी इंद्रिय का उपेत (आया हुआ) वीर्य, को देने से अवश्य यशीकरण होता है। स्वाश्रु वीर्य मला स्त्ररिम भविता रसना श्रुभ: उन्मत्त स्थान पानादिव्या मिश्रं जन वश्या कृत ||२८५॥ उन्मत्त (धतूरा) की रखा (रसमें) अपने आंसू वीर्य मल और रल को भावित करके अन्न पानादि में मिलाकर देने से वशीकरण होता है। स्वस्टा मलेंद्रिय युक्तो मेहन चूर्णः श्रुमः कफो थवा दत्तः साध्यं वशटोदाजीवित मंत्र संभिन्नः ॥२८६ ॥ अपने मल वीर्य अथवा कफ का चूर्ण देने से साध्य जन्म भर तक मंत्र से वशीभूत की तरह यश में रहता है। करिमद कुकुट रसना निज नयनजसलिल पंचमल मिश्र अशनादि वशी कुर्यात् पदत्तम चिरेण साध्य जजे ॥२८७ ॥ CRECTORISEASIPTSDISER०५३P/58755RISTRISTRISION
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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