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________________ DASIRIDICISIRIDIDIEO विद्यानुशासन DECISIOTSSISTOTSIDE वत्या तटा प्रदीपं प्रबोध्य कपिलायतेन सिद्ध स्थाने दुर्दुर भंग रस संमार्जित नव खप्पर जनं धियेत ॥२६२ ।। ॐहिरिणि हिरिणि स्वाहा मंत्रं पठतां जनं धार्य प्रपठस्तमेव मंत्रं करोतु नयनां चनं चापि ॥२६३॥ सकल जगत् एक रंजने मंजनमिदमातनोतु सु भगत्यं स्त्री पुरुष राज वश्यं करोति नयन द्वयाभ्क्तम् ॥ २६४ ।। लोह चूर्ण, सरफोका, सहदेवी, मोहिनी (पोदीना) मयूरशिखा, काश्मरि शिखा (केशर), कुठ, चंदन कपूर शमी के फूल, राजावर्त, भ्रामक (भमरछल्ली) दिवसकरा, आवर्त मद जरामासी नृप (अमलतास) पूति करंज, केशर, चंदन वाला (नेत्रवाला) और श्वेत गिरि कर्णिका (सफेद कोयल बूंटी) श्रोतांजन (काला सुरमा) नीलांजन (नीला सुरमा) सौ वीरांजन और रसांजन इस के अतिरिक्त और भी पद्मा (तुलसी) अहि (नाग केसर) सिंह केसर (शेर की अयाल) शार्दूल सिंह केनख और विकृति (बिगड़े हुए) गोरोचन चंदन हरिकांता (तुलसी) भांगरा तुष (बहेड़ा) के चूर्ण को अक्तक (लास्य) के पटल पर पियोतकर उसेट कबी खजाहफिर उसको पांच रंग के धागे से लपेट कर वृक्षों के दूध में भावना । दे फिर उसको कारु की के स्तनों के दूध से, भी अच्छी तरह भावना दें, उस बत्ती से सिद्ध स्थान में कपिला गाय के घृत से दपिक जलाकर दुर्दुर धतूर {धतुरा) भांगरा के रस से साफ किये हुए नव खर्पर पर अंजन बनाए । ॐहिरिणि हिरिणि स्वाहा इस मंत्र को पढ़ते हुए अंजन बनाए और इसी मंत्र को पढ़ते हुए आंखों में अंजन लगाएं। सम्पूर्ण जगत को प्रसन्न करने वाले इस अंजन को आँखों में लगाने से सुंदरता बढ़ने के साथ साथ स्त्री पुरुष और राजा भी वश में हो जाते हैं। भ्रामक हिम नीलांजनं वालालक्ष्मी सुमोहिनी रक्ता व्याय नरवीहरि कांता वर कंदो रोचना युक्तः ॥२६५ ॥ कोकि शिरवे त्येषा मललक पटले विकीय संचूर्ण प्रगुक्त विधि समेतं जन रजनंमजननं तदिदं ॥२६६ ।। STERISTOTSIRIDIOSDIDISTRIER०५०PISISTERISTRISTRISTOTTEST
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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