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विधानुशासन PPPSPSPSS
अं (हरताल ) शशि (चंदन) हिम (कपूर) मंजठि लक्ष्मी (तुलसी) गो चंदन की जड़ कूटा ( कूठ ) श्री वृक्ष (बेल) के पत्तों के अग्र भाग वशीकरण के आठ मंगल कहे गये हैं।
देव सहां मार्कवमिदं वल्ली भद्रां सलज्जां कनक प्रसूतां
सर्वास्तु कांतां श्रियमप्य शेष वश्याय मूध्यां विभ्रयाद्दिनादौ ॥ २१४ ॥
देवी (मूर्वा सहा (घृतकुमारी) मार्कव (भांगरा) इंद्र यल्ली (इंद्रायण) भद्रा (जीवंती) लना (लजालू) कनक प्रसूता (धतूरे के फूल ) यह सब स्त्रि (कांता) को मंगलकारी वशीकरण के लिए प्रातः काल के समय अपने सिर पर डाले ।
गतहत नगर हदि लिहता लिंग पाचितं विधिवत्
निशि पुष्टयै शिवभवने तैलं मदनां कुरो नाम्रा ॥ २१५ ॥
एतद् वदनांभ्यक्तं भवति सदा विश्व लोक वश्य करं पुष्पेतु स्वयं च मलं भक्ष विमिश्रं स्त्रियं वशयेत्
श्रीतांजना जलि करि मृतमूद्धन माल्य निर्माल्य कल्क सहितं नृकपाल चूल्यां तैलं महत्थित् वनेन्ट कपाल पात्रे सिद्ध नरांश्च वनितांश्व वशीकरोति
शिशो रजात दंतस्य जिह्वा गोरोचना शिवा भृंगस्टा पुष्पैः पिष्टा भिरा भिर्वश्याय पुंड्रक :
॥ २१६ ॥
सिता पराजिता देवी मार्कवः पशु रोचना एतैः श्वेत वचो पेतैस्तिलको वशये ज्जनं
॥ २१७ ॥
॥ २१८ ॥
॥ २१९ ॥
शिला गोरोचना पत्र कुंकुम स्तिलकः कृतः गले लेपोयं वशये लोकं हन्याच्च सकलं विषं शिला (मेनसिल) गोरोचन पत्र (तेजपाक्ष ) कुंकुंम (केशर) का तिलक करने और गले पर लेप करने से यह लोक को वश में करता है तथा सम्पूर्ण विषों को नष्ट करता है ।
॥ २२० ॥
सिता (शक्कर) मयराजिता (पारिजात-हार श्रृंगार) देवी (मूर्वा) मार्कय (भांगरा) गोरोचन और श्वेत वच के तिलक से वशीकरण होता है।
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