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________________ PSPSPSPSPSPS विधानुशासन 95959595PSS * ee * ही देव ही देवदत को स्वाहा ॐ ही जैसे ॐ ही मो あ ही देवदस 'को देवदत्त यज्ञदत्त डीजे स्पष्ठा की 2 स्पर स्वाहा डीमो Bich हो देवदस यूँ यज्ञदत श्री देवदस संकोच पञ्च वाक पुष्पी शंखपुष्पीप्रकल्पितं चूर्ण योगमिमं प्राहुः प्रधान वश्य कर्माणि रशदत ही देवदत * पदस पित्तंजारी साहा लाक्षा सहदेवी कृतांजलिः आसां चूर्णे घृतो मूर्द्धित वश्यं वितनुते जगत ॥ २११ ॥ पितंजारी ( त्रायमान = अमीरन) सहा (घृत कुमारी) लाक्षा ( लाख) सहदेवी कृतांजलि (लजालू) के चरण को सिर पर डालने से जगत वश में हो जाता है। ॥ २१२ ॥ संकोच पत्र (लज्जावती के पत्र) बाकपुष्पी (औंधा हूली) शंख पुष्पी (सखाहुली) के चूर्ण को वश्य क र्म के प्रयोगों में प्रधान कहा है। अल शशि हिम मंजिष्टा लक्ष्मी गो चंदना शिफाः कुष्टा सश्रीवृक्ष पलाग्ने वशी कृतां मंगला न्यष्टौं 95959596969599 १०४२P59595959595951 ॥ २१३ ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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