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________________ CASEISO15121525T05 विद्यानुशासन ISISIOTSEXSTOISTRIES Ikshetnamasther अनुकभर /अये विजय मोहय २ अमुक पर वाय अये भावते मोहय * श्रौं ड्रा मलमपट्टीको असे सांपति मोहर अशुभ ना मोहए RAyकर समय 2. श्री श्री अये जो मोस? अभूक न अ. J श्री *.श्री श्य ये म मोहय ५ अकरमय श्री श्रा मधुर त्रोण गुग्गुक्त दशांग पंचांग धूपमिश्रेण जुहुयात् सहश्र दशकं वशं करोती मपि का कथाऽन्येषु ॥२१० ॥ अग्नि मंडल की पुट के अंदर ह्रीं उसमें अपना और साध्य दोनों का नाम लिये उसके बाहर अग्नि मंडल का संपुट अर्थात् छह त्रिकोण कोठे बनाकर एक एक को छोड़कर ॐ ह्रीं जंभे स्वाहा ॐ ह्रीं मोहे स्वाहा मंत्र लिखे । कोठो के अंतराल में ह्रीं और काणे में क्रों लिखे। उसके बाहर मंडल में अपने नाम सहित हीं और उसके बाहर दूसरे मंडल में साध्य के नाम सहित छू लिखे। इस जगत को वश में करने वाले कषय नाम के यंत्र कुंकुम हिम (कपूर) मधु मलयज (चंदन) गौ के दूध गोरोचन अगर और मृग मद (कस्तूरी) से लिखे । त्रि मधुर (घृत बूरा दूध) गुग्गुल दशांग धूप और पचांग धूप से दस हजार को हवन कुंड में आहुतियाँ देने से इंद्र भी वश में हो जाता है। औरों की तो क्या बात है। ලලලකටගහලත්සිං oxy කට හසු
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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