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SPPSPSS विधानुशासन क
बाणान पद्म दलातरेषु विलिखेत् शब्दं पाशं चाकुशं क्षीं पत्रां ग्रगर्त लिखे दयनमः पर्यन्त यामादिना ॥ ९९९ ॥
पत्राग्र सिटत बीज बाण शिखिनी शीघ्रतं आकर्षय, तिष्ट द्विद्वर्मम सत्य वादी वरदे मंत्रेण वेष्ट्यं वहिं ॥ १९२ ॥
वाह्ये ह्रीं शिरसावृत्तं रथं तद्रेखाग्योन्या कृत्येमंध्ये क्लीं मुपरिस्थ कोण युगले द्रां द्रीं मधोब्लं लिखेत्
बाह्ये दिक्षु विदिक्षु संतधरणी बीजान्विते दुपुरं, तदवाह्य लिखदि दिग्वाटिंग दल कार्य ताज्यित वा ॥ ९९९ ॥
देव्या ज्वालामालिन्योक्तमिदं परम देवगृह यंत्र, पुष्याष्य शुभ तंत्रै विलिख्य भूर्जे पटे चापि
॥ १९३ ॥
शिखिम देती हृदयोपहृदय मंत्रेण पूजितं सततं. जपितं हुतं च सकलं स्त्री नृप रिपु भवन वश्य करे
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॥। १९२ ।।
॥ १९३ ॥
॥ ९९४ ॥
मधुरयेण गुग्गुलु दशांग पंचांग धूप मिश्रेण जुहुयात् सहश्र दशकं वशं करोती द्र मपि का कथान्येषु एक ऐसा कमल बनावे जिसकी कर्णिका में कूट (क्ष) आकाश (ह) और भपिंड (भ) पिंडाक्षरों के मध्य में (निलय) अर्थात् घर का ज्वालामालिनी देवी का और अपना नाम पृथक पृथक देकर उसको भवर पिंड (ल्वर्यू) से वेष्टित करें। उसके बाहर (द्वयष्ट) सोलह दल का कमल बनाये। जिनके आठों दलों के पत्रों में अंतराल से आठ पिंडासीर को (य र घ झष छठव) लिखे और दूसरे आठ पत्रों में दो दो स्वरों के साथ उनके नीचे शब्द निम्नलिखित लिखे पाश (आं) अंकुश (क्रौं) और क्षीं तथा इनके नीचे ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं क्रम से लिखे। इसके पश्चात इस कमल रूपी यंत्र के बाहर हां पाशं (आं) अंकुश (क्रों) क्षीं के आगे काम बाण (ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं) शिखिनी ज्वालामालिनी देवी शीघ्र (अमुक) आकर्षय और तिष्ट (ठ) दो दो दफा बोल कर फिर मम सत्यवादी वर दे नम तक वामादि क्रम से लिखे इसमंत्र से अर्थात्
ॐ हां आं को क्षीं ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं ज्वालामालिनी देवी शीघ्र अमुकं आकर्षय आकर्षय तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः मम सत्य वादि वर दे नमः ॥
इस मंत्र से यंत्र को बाहर से वेष्टित करे। बाहर ह्रीं की तीन रेखाओं से घेरकर मध्य में क्लीं को लिखें, क्लीं के ऊपर दो कोनों में द्रां ह्रीं और नीचे ब्लें बीज को लिखे। इसके बाहर दिशाओं में धरणी बीज (क्ष) और विदिशाओं में रांत बीज (लं) लिखे। बाहर इन्द्रपुर चंद्रमंडल बनाये । उसके
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