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________________ 95959526 विधानुशासन 96999क कामाधिप (क्ली) सहित शून्य बीजं (ह) लिखकर बाहर आठ दल के कमल के सब पत्रों में भी वहीं बीजाक्षर (क्ली) लिखे। उसके बाहर काम बाण के अन्दर (ह्रीं क्लीं क्यूं द्रां द्रीं) लिखकर उसे भुवेनश (ह्रीं) से वेष्टित करे। जो पुरुष इस मंत्र को लाल कनेर के फूलों से प्रतिदिन १०८ बार जप करता है, मनुष्य और राजा लोग उसके वश में होकर उसके चरण कमलों में काले भौरे के समान बैठे रहते हैं। ॐ ज्वाला मालिनी हवलीं ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं सर्वजनं वश्यं कुरू कुरू वषट् । पूजा मंत्र क्ली क्ली है बली 9595952 फैली क्ली 谈 Hal क्ली फ्ली कुरा काश भपिंड मध्येनिलये नाम स्वकीयं पृथक्, दत्वा तत्पारिवेष्टितं भपरसत पिंडेन गृहये नथ या द्वयष्ट दलाब्ज मष्टम दले ष्यन्यच पिंडाष्टक पत्राणां तरितं लिखे रस्यर युगं शेषे च पत्राष्टके स्वर युगल स्या धस्तात् शब्द पाश तथा कुश क्षीच तेषांचाधः ह्रीं क्लीं ग्लूं द्रां द्रीं क्रमाद्योत ५ ॥ १८८ ॥ ॥ १८९ ॥ ॥ १९० ॥ 59596१०३१950% ちゃちゃらです
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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