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SHRISTRISTICISIOTSE75 विधानुशासन DX5ISTRISTRISADISTRIES
व्याधी वहतिफल रस सूरण कंडुति चणक पताम्लां, कपि कच्छु वज्र वल्लि पिघलीका माम्लिका चूर्ण ॥१४४ ॥
आल्या वर्तित लाग जत वागन भावयेत् क्रमादितैः
स्मर सुबलं कृत्वैवं वनिताया दावेण कुटात् ॥१४५ ।। बड़ी करेली छोटी पसर करेली के फल का रस सूरण (जमीकंद) कंडुति (अग्निक) चणे के पत्तों का जल कीच यजयल्ली कांडवल्ली पीपल, आम्लिका (चोगरी धूर्ण) को अग्नि से पिघ लाये हुए से में नौ बार भावना देकर लिंग पर लेप करे तो स्त्रियों को दायित करे।
भानु स्वर जिन संख्या प्रमाण सूतक गृहित, दीना रात अंकोल राज वृक्ष कुमारी रस शोधनं कुर्यात् ।।
राशि रेरया वर चूर्ण कोकिल नयना पामार्ग कनकानां चूर्णं सहक विशंति दिनानि परिमर्दयेत् सर्वा || निशायां कांजिका धूपं दत्वा योनौ प्रवेशयेत्, काल मध्यगत प्रायां वेषां विज्ञायतां क्रमात् ॥
नीरता विभाणां येषां रति संगमे,
मदोन्मतां द्रावटति तादशो मप्टोष जलका प्रयोगस्तु॥ भानु (१२) स्वर(१६) जिन संख्या प्रमाण (२४) पारा लेकर उसको मंकोल (ढेरा). राजवृक्ष (छोला) कुमारी रस, (गंवारभाटा) इन रसों को १२-१६-२४ दीनार या गद्यानक के बराबर रसो को लेकर उस पारद का शोधन करें, फिर शशिरेसा (याकुची वीज) खरचूर्ण (गर्दभ चूर्ण-कत्तगिरी कोकिल नयना (कोकिलाक्ष) बीजं (रालमखाना) मपा भार्ज (प्रत्यक पुष्पी- चिरचिरा ) कनक चूर्ण (काला धूतरा) का चूर्ण इनलन से इक्कीस दिन तक खरल में मर्दन करे, उसे शोधित पारद मर्दन करें। रात को कांजी (आरनाल) से मर्दन करके धूती देकर हल्दी के चूर्ण से जो पारद से सोलह गदयान प्रमाण से मदित धूनी देकर योनि में प्रवेश करावे, बाला स्त्री के लिये १२ गद्याण प्रमाण और मध्य आयु वाली स्त्री के लिये १६ गद्यान प्रमाण तथा वृद्ध स्त्री के लिये २४ गद्यान प्रमाण जल का क्रम पूर्वक जाने निंद्रा के अभाय वाली स्त्री को यह जलका प्रयोग रति के संगम में उत्तम करके द्रवित करता है।
करेणदाय वामेन निजरेतो रतौ नरः,
वाम स्त्रिायाः यद लिपेत तेनाष्टा स्याता चिरं प्रियः ॥१४९।। ಅಥಣಿಥpಡ{o{{VEMರ್ಥದ