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________________ P59595PS5/5 विद्यानुशासन 959505 सूरण टंकण शरपुंखी पिपली मातुलिंग चणकांयतः, सहकारांब समेतं भग निर्झर कारणं लिप्तं ॥ १३७ ॥ द्विरदमद (हाथी का मद), कुष्ट (कूढ़), मृग मद (कस्तूरी), कपूर उन्मत्र (धतूरा), पीपली कामं ( मेनफल ), ( जरामासी) अंबुज (कमल), सेंधा नमक, नागरमोथा, मुलहटी, सुरण (जमीकंद ) टंकण (सुहागा ) सरफोका पीपल मातुलिंग (हिजो)() (आम का रस ) से योनि को द्रावित करने के लिए लेप करे । स्त्री जन गृहय द्रावी वनिता सुरतों ध्व दर्प विद्रावी, हिम मधु टंकण पारद लेपः सहकार रस मिलितः ॥ १३९ ॥ हिम (कपूर) मधु (शहद) टंकण (सुहागा ) पारद (पारा) सहकार रस (आम का रस ) का लेप स्त्रियों की योनि को द्रवित करके उनके उठे हुये अभिमान को नष्ट करता है। कर्पूर एलो माक्षिक लज्जारिका युक्त पिपली कामः, मग निर्झर प्रकुर्यात् कुरुंरिका छोर संयुल 11 880 || कपूर एलो (इलायची) माक्षिक (शहद) लजालूसा पीपल मेनफल और कुरांरिका (करसरया) के दूध में पीसकर लेप करने से योनि द्वावित हो जाती है। वरकन्या पय पिष्टौ लांगली हेम पारदैः लेपो नार्या कृतो यौनौ तां द्रुतं द्रावयेद् ऋतौ ॥ १४१ ॥ वर (केसर) कन्या (धृतकुमारी) को दूध में पीस कर लांगला (कलिहारी) हेम (धतूरा) पारा का लेप नारी की योनि को रतिकाल में शीघ्र द्रावित करता है । अग्न्या वर्त्तित नागे हर वीर्य निक्षिपेत् ततो द्विगुणं, मुनि कनक नाग सर्प ज्योतिष्मत्यत सोभ्यां चतन्मध ॥ १४२ ॥ केन मर्द्दयित्वा गणे कार्याया मदनवलयं के कृत्वा, रति समय वनितानां रति गर्व विनाशनं कुर्यात् ॥ १४३ ॥ अग्नि में पिघलाये हुये नाग (सीसे) में उससे दुगुना हरवीर्य (पारद) डाले, फिर मुनि अगस्त काला धतूरा नाग सर्प (मदन कंद - नाग दमनं) ज्योतिष्मतो (मालकांगनी) शीभ्यां समुच्चये सामिल करके उससे पहले कहे हुए सीसे को इन रसों से अच्छी तरह मर्दन करे । डीकेन गणिकार्या ( कनेर के रस से ) मदन वलयं (स्मर वलयं लिंगे) को मर्दन करे, रति काल में स्त्री के गर्त को नष्ट करता है। 9595296959PP १०२० 959595959595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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