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9595295059593 विधानुशासन 959595959595
शीर्षास्य हृदये नाभौ पादे वानंगवाणमपि योज्यं, संमोहमानु लाम्यै विपरीतौ द्रावणं कुरुते
॥ १३० ॥
सिर मुख हृदय नाभि और पैरों में काम बाणों को भी लगाना चाहिये। इसको सीधे क्रम से लगाने से संमोहन और उलटे क्रम से लगाकर ध्यान करने से द्रावण होता है।
द्रां द्रीं क्लीं ब्लूं सः स्मरबाण
यह काम के पाँच बाण हैं।
अंतः स्थित जपापुष्पं सुपक्कं भूरि सौरभं जंवीर फल माघांत नार्या विद्रावणं मतं
तं ॥ १३१ ॥
अंदर स्थित किया हुआ जपा पुष्प (गुडहल का फूल) तथा मर्च्छा तरह पके हुए और बहुत सुंगध वाले जंवीरी नींबू को सूंघने से स्त्री द्रवित हो जाती है।
लिप्त भ्रार्क कीटयां नाग वल्ली दलं स्त्रियः, यदवा किंशुक पत्राबुं संलिप्तो द्रावयेत् ध्वजः
टंकण पिछलिकामा सूरणं कर्पूर मातुलिंग रसैः, कृत्वात्मांगुलि लेपं कुर्याति स्त्रीणां भग द्रावं
॥ १३२ ॥
॥ १३३ ॥
टंकण (सुहागा ) पीपल कामा (मेनफल) सूरण (जमीकंद) कपूर मातुलिंग (बिजौरा ) के रस से अपनी उगुली (ध्वज) पर लेप करने से स्त्री द्रवित होती है।
हर वीर्य लांग लिका कपि मूलं काकमाची रसमिपं कन्या रस संयुक्तं करलेपो द्रावयेत् अबलां
॥ १३४ ॥
हर वीर्य (पारा), लांगलिको (कलिहारी), कपि मूल, कोंच, कीचड़ का कमाची (मकोय) का रस मिलाकर और गंवार पाठा का रस सहित लेप करके स्त्री को द्रवित करे।
उपातु पत्र सलिलं मगस्त्य दलजो रजः ।
सपदि वाध्वजे लिप्त सुरते द्रावयते स्त्रियः
॥ १३५ ॥
लिंग के ऊपर उपानुपत्र का जल और अगस्त के पत्रों का चूर्ण का लेप करने से रति काल में स्त्री द्रवित हो जाती है ।
द्विरदमद कुष्ट मृगमद कर्पूरोन्मत्त पिपली कामं । रुद्रजय बुज सैंधव नागर मुप्ता सुयष्टीकं
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॥ १३६ ॥