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________________ SASTRISTOISTRISTOTRICT विद्यानुशासन VECITICISTORICISIONS दुर्दुर (ऋषमक) के तैल क्षोद्र (शहद) इंदु (कपूर) को शियांबु (बलिपत्र के रस में पीसकर अपने अंग के पांचो मलों को मिलाकर बना हुआ पूआ स्त्रियों को दे तो वश में हो जाती है। नेत्र श्रोत्र मलं शुक्र मूत्र जिह्वा मलास्तथा, वश्य कर्माणि मंत्रज्ञे पंचाग मलमुच्यते ॥११५॥ आंख, कान और जीभ का मैल वीर्य और मूत्र को मंत्र शास्त्र के विद्वानों ने वश्य कर्म का पंचाग मल कहा है। मंग श्रुति हके याण जिह्वा रक्ष द्वियोनि मेद्र मलाः, स्वे दाव मूत्र लालष्टक श्रृकार्तवविशापि वश्या मलां ॥११६ ।। कान, आँख, नाक, जिह्वा दोनों कछा (कोख) योनि मेढ (लिंग) के मल पसीना, मांस मूत्र लाल (लार) खून भी धर्म काज का पानी विष) यह सब वशीकरण के मंत्र है। कमुकंफणि मुस्वनिहितं तस्मादि वश त्रेयण, संगृहटा कनक विषं मुष्टि हिलि नो चूर्ण प्रत्येकतः दिप्त्वा ॥ ११७॥ रवर तुरंग श्रुती क्षीरैः क्रमशः परिभाव्य योजयेत्, अबला जन वश क रण मदनक्रमुकं समुदिष्टं ॥११८॥ सर्प के मुँह में तीन दिन तक रनी हुई क्रमुक फल सुपारी धतूरा विषमुष्टि (कचला) हलिना (कलिहारी) प्रत्येक को क्रमशः गधी घोड़ी कुत्ती के दूध में भावना देकर अपने पाँव के तलवों में लगाये तो इसको स्त्रियों को वश में करने वाला मदन क्रमुक कहा है। द्रावण मंत्र ॐ चले चले चुले चुले चित्त रेतो विमुंच विमुंच स्वाहा विनयं चेल चुले द्विचितो रेतो विमुच युग। होमं च द्रावयति लछ जाप्यान्मत्रो वनिता समूहमिह ॥११९ ।। विनयं चले चले चुले चुले चित्त रेतो विमुच विमुच स्याहा,ॐ चले चले चुले चुले चित्त रेतो यिमुंघ विमुंच स्वाहा। विजय (ॐ) दो बार चले चुले चित्त रेतो विमुच और होम (स्थाहा) सहित मंत्र को एख लाख जप करने से सब स्त्रियाँ द्रवित हो जाती है। SSISTERISTISTOTRIOTICE१०१६ PISTORICISTRICISTRIEOS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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