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________________ 95PSPSPSS विधानुशासन वटि काभिः समं क्षिप्त्वा लवणं शुभ भाजने पास्वमूत्रतो दद्यालवाद्यं स्त्रीजन मोहनं ちゃちゃらちゃ ॥ १०८ ॥ कनेर भुजंगाक्षी (सरपाक्षि) जदा दंडी इन्द्रावारुणी (इन्द्रायण) गोवंधनी गोवल्ली) लजीरका (लजालू) की गोली बनावे। इन गोलियों के बारबर णषक मिलाकर अच्छे बर्तन में रखकर अपने मूत्र में पकाये फिर खिलाने से स्त्रियाँ वश में होती हैं। फलं सुरेन्द्र वारूण्यां स्व शुक्रं कनकस्य वादतं । भोज्यादिसंमिश्रं वशयेत् वनितां जनं ॥ ११० ॥ सुरेन्द्र वारुणी (इन्द्रायण) के फल को अपने वीर्य, अथवा धतूरे के फल को भोजन आदि में मिलाकर देने से स्त्रियाँ वश में होती है। शंखपुष्पी शमीपुष्पं वचा मंजलि कारिका, शुक्रं च दद्यादतादौ वांछन वशयितुं स्त्रियां ॥ १११ ॥ शंखपुष्पी (सखाहोली) और शमी (विजडे) के फूल क्च मंजल कारिका (गंध तुलसी) और वीर्य को भोजन आदि में देने से स्त्रियाँ वश में होती है। सचित्रगुरू हष्त चित्रा मूले ष्वादाय जीर्ण कनकस्य दल, कुशम धर्म कीकस शिफाः पृथक पेषयेत्कमशः क्षत भव लालाश्रम जल भृगु सुत मूत्रै स्तातश्च तत्सर्व, संयुक्तम स्कमिश्र भोजन निहितं स्त्रियो वशयेत् हत चित्र और मूल नक्षत्र में तीनों दिन गुरुवार होने पर पुराने धतूरे के पत्ते फूल छाल ला करके और कीकस की छाल लेकर के अलग अलग पीसे और जखम में से बहने वाली लार पसीने की बूंदे भृगुसुत के मूत वीर्य और मूत्र को उसमें मिलाकर भोजन आदि में देने से स्त्रियाँ वश में होती है। ॥ ११२ ॥ वर्हिशिरखा सितगुंजा गोरंभा भानु कीट कष्य मलानि, निज पंच मलीपेत चूर्ण वनितां वशि कुरु ते ॥ ११३ ॥ मयुरशिखा सफेद चिरमी गोरंभा, आक के वृक्ष पर रहने वाले कीड़े की विष्टा और अपने पांच जगहों के मलों सहित चूर्ण स्त्री को वश में करता है। शिवांबु पिष्ट दुर्दुर तैल क्षोदुया रतैः, मलैश्च पंचमि मिश्र पूजं पशयते स्त्रिया: 25252525252525; -‹‹ PSP52525252525 ॥ ११४ ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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