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________________ CSIRIDID5050585 विधानुशासन BASIRSIDASIDDCDDIN रात्री में रति के समय सुरगोप (इंद्रगोप ) के चूर्ण सहित कपिल गाय के घृत में जला हुआ दीपक पुरुष के वीर्य का स्तंभन्न करता है। निशेगुदोशीर सितासक टंकण हिम वारण, पिष्टै ल्लिप्त तनुः स्वागम जंगम न्वते मनः । ॥१०१॥ निशा (हल्दी)इंगुदी ( हिंगोट) उशीर (रक्स) सिता (मिश्रो) सूक (कूट) टंकण (सुहागा) हिम (कपूर) वारिण (जल) से पीस कर शरीर पर लेप करने से मन कामदेव के समान हो जाता है। दिवसेंदुमनु समुद्रं प्रमाण मादायमोदनीं पिंडी, पंकज सिताक्क मूलं तैल्लेंपो वश कट्बलानां ॥१०२॥ दिवसेंदु (दिन का चन्द्रमा सूरज) समुद्र तक जाने पर अर्थात् रात होने पर प्रसन्नता से हर्ष देने वाली पिंडी कमल सफेद आक की जड़ को लेकर लेप से अबला (स्त्रियां) वश में होती है। जात मात्रस्य वत्सस्य मृष्टता ना रयादितस्य यः तुल्यस्तद्युल रजनी लेप: स्त्री वश्यमुत्तमं ॥ १०३॥ तुरन्त के पैदा हुई बछड़ी की बिना ची हुई गृष्टि (जरायु) और हल्दी का लेप उत्तम वशीकरण है। रुजा चटका मूर्दाग्रा काक जिन्होंद्रियाणि च, वितरे द् रसनादौतं मन्वते मन्मथं स्त्रियः ॥१०४॥ उत्तम कन्या मूलं मत्त शुनो जिहिकां गजस्य मलं, सिच्छात्वात्ममलैः सह दद्यात्स्त्री वशष्यितं वातं ॥१०५ ॥ चूर्ण गोरंभाया वहिशि रवायां च प्लल्स गुंजाया: रविदल कीट मलस्य च निजमलं स्त्री विमोहयति ॥१०६॥ करवीर भुजंगाक्षि जारी दंडी इंद्रवारुणी, गोवंधनी लज्जारिका विधाय वटिकावट COPIECTRICISTOSTERISTOTR०१४ PISTERIOTSIDERESIDEICTER ॥१०७॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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