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950150505505125 विधानुशासम 1501510051015101510SS बिजोरे के बीजों का तेल और कपूर सहित मिलाकर काले और सफेद कमल के धागे से बांधने से ध्यज के आगे तक आया हुआ वीर्य रुक जाता है।
स्लुगगतक्षीर संपिष्ट समंगा मूललेपनं,
विहितं पाद तलेया स्तंभयेत धातुमतिमं स्नुगगत (कूठ) और अंगा मूल (करटंक की जड़) को दूध के साथ पीसकर पैरों के तलवों पर लगाने से वीर्य का स्तंभन्न होता है।
कपोत सकृता लेपमजा क्षीरेण मार्ग,
स्तंभोत्पादतलयो रसंगाटं महीतलः कबूतर की बींट को और अपामार्ग (आंधे झाड़े) के बीजों को बकरी के दूध में पीसकर पृथ्वी को बिना छुये हुए पायों के तलवों पर लेप करने से वीर्य का स्तंभन होता है।
स्नुहायागोरजायाश्च सप्तकत्वः पृथक पृथक,
क्षीरं पादलताभ्यायतं शुक स्तंभाय जायते ॥९७॥ स्नुही (थोर) गाय और अजा (बकरी)के दूध का सात बार अलग अलग पैर के तलवों पर लेप करने से वीर्य का स्तंभन होता है।
मंदार तूल रचिता ज्यलिता कोड मेयस्या, वीणिर्तयेद रात्रोचकस्था स्तंभनं नृणं
||९८॥ आक की रूई की क्रोडमेधस (बाराही कंद) से यत्ती बनाकर रात में जलाने से वीर्य का स्तंभन होता
अलयर्क मेहन रजो गर्भा प्रज्वलिता गहे, अलक्तकदर्शा दीग्ध स्तंभयेभृगु संभवं
||९९ ॥ अलर्क (पागल कुत्ता) के लिंग के चूर्ण की अलक्तक (लाख) की बनी बत्ती को घर में जलाने से वीर्य का स्थान होता है।
कपिला यतेन वोधित दीपः सुरगोपचूर्ण संभिलितः, स्तंभयति पुरुष वीर्य रत्यारंभे निशा समये
॥१०० ।।
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