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SECTORATIOIRIDIHITS विधानुशासन PARTOISPIRICIRCADEISE नीली सौयेन पत्रेण (आक के पत्ते) चक्र (तगर) का अपने मूत्र में पीसकर नाभि पर लेप करने से वीर्य का बहुत स्तंभन होता है।
सितासिताब्ज नीलाब्ज केसरैः क्षौद्रकल्कितैः नाभौ विनिहितैः शुक्रं स्तंभ नीयात चिरं तनो
॥८९॥ सफेद कमल काला कमल और नीले कमल की केसर के कल्क का शहत के साथ नाभि पर लगाने से बहुत समय के लिए वीर्य का स्तंभन होता है।
नाभि मूले रजी भूता लिप्ता मंज्दुले करिका नक्षमेत सह क्षौद्रा रेतः पात कथामपि
॥९ ॥ मंडल करिका (गंध तुलसी) के चूर्ण का शहद के साथ नाभि पर लेप करने से पुरुष स्खलित होने की बात भी नहीं सुनसा है।
सित वायस जंघायाः मलं मध्वज केसरातै पिष्ट्वानि नाभौ न्यास्तानि रेत स्तंभ वितन्वते
||९१॥ सफेद (काक जंघा) सफेद चिरमा की जड़ शहत घृत और कमल की केसर को पीसकर नाभि पर लेप करने से वीर्य का स्तंभन होता है।
दुस्पशोषण कुर जीरकवला दग्धा पुट वारिण
पिष्टय कंदल केद जेन गुलिकां कत्वा तथा शोषयेत दुस्पर्शो (लता करंज) उष्ण (सोंठ) कूठ जीरों बला (खरेंटी) को पुट में जलाकर पानी से पीसकर कंदल कंद (केले की जड़) के रस से गोली बनाकर सुखा ले।
सानाभौ मधु कल्किता विनिहिता दत्युत्सवा
दुवंर प्रारंभेष्ववसान काल विकलं कर्तु रतं वारयेत् ॥१२॥ उसका शहद में कल्क बनाकर नाभि पर लेप करने से रति के उत्सव में रतिकाल की समाप्ति नही होती है।
कष्ण वषदंश तक्षिण जंयायाः शल्य खंड़ मादाय
वद्धं कटि प्रदेशे वीर्य स्तंभं कुरुते ॥९३ ॥ काले बिलाय की दाहिनी जंघा की हड़ी के टुकड़े को कमर में बाँधने से पुरुष का वीर्य स्थंभित होता है।
बीजानां बीज पुरस्य तैलं शशि समन्वितं सितं सिताब्ज सूत्रेण रुंध्याद्वीरांध्ययास्यगं
॥९४॥
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