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________________ 050505127501505 विधानुशासन 75075251015015 रुक (कूठ) काली मिरच कपित्य निर्या स (कैथ का गोंद) रंभा फलांबु (केले के फल का रस) को शहद में पीसकर ध्वज (लिंग) पर लेप करने से स्त्री वश में होती है तथा उनका द्रावण होता है। मधुकत्मलाज पारदजातिफल रेणवःअगस्त्य कुसुम जलैः कतकास्ति युतो लेपोथ्वजस्य नारी वशी कुर्यात् ॥७४ ।। मधुकृत (शहद) मलयज (चंदन) पारा जायफल का रेणु (चूर्ण) अगस्त के फूल का रस कतकास्थि (निर्मली की गुठली) सहित लेप लिंग पर करने से स्त्रियाँ वश में होती है। सरण टंकण शशि रस मधरैबीज मनिदल स्वरसैः भवति प्वजो विलिप्तः कांता हूदटौ कसंवननं ॥७५ ॥ सूरण (जमीकंद) टंकण (सुहागा) शशि कपूर) का रस मधुर बीज (महवा का बीज) मुनि (अगस्त्य) के पत्तों का स्वरस का ध्वज पर लेप करने से स्त्री का हदय वश में होता है। वृहती फल कण तंदुल मरिच फलैचंद्रव सुकृति पत्र/कायेन लिप्त लिंग कामन्यां कामद्रव कामी ||७६॥ वृहती फल (कटेली के डोडे) कण (पीपल) तंदुल (चावल) मिरच फल चंद्र (कपूर) वसृकृति (वासा अडूसा) के पत्र का लेप करने से स्त्री कामदेव के समान प्रेम करती है। मागधि का मधुकै रसतुषार कपित्य पल्लवस्व रसैः करुतै वरांग लेप सृष्टि मिथुनस्य रति सम ॥७७।। मागची का (पीपल) मधुक (महवा) का रस तुषार (ओंस का जल) कैथ के पत्तों का रखरस का उत्तम अंग पर लेप करने से रति के समय में स्त्री पुरुष से संतुष्ट होती है। सुरते कुरुते पारद रवंड़ सिता तुहिन केतक रजोभिः गुह्ये विहितो लेपो दंपत्योः काम रस मधिकं ॥७८ ॥ पारा खांड शक्कर तुहिन (कपूर) और केतकी का चूर्ण से गुप्त अंग पर लेप करने से दंपत्ति को कामदेव का अधिक रस मिलता है। पिष्टै : कुसुम सारेण सरसी रूह के सरैः सद्यो प्वजोत्थित कुर्यात् नाभिमूले विलेपनं ॥ ७९|| 9501501521525215105१०१०/521501501512152ISODS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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