SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1013
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1 ? ! E OSP59595955 विघानुशासन 9595PSPSPSPS चूर्णे नांजन मलयज सरसिज दलजेन ना प्रियंगुनां, अंजित दृष्टि स्तरुणी या पश्येत्सा भवेद्वश्या पारा पतस्य सकृता मधुना सैधैवेन च आलिप्तः साधनः कांतां स्व वश्यां कुरुते रते गंधात कुनटी लिप्त शोषिता या रसः वह सक्षौद्रं मेहने लिप्तमंगनां कुरुते वशे मधु कर मल्लक शुल्क संलिप्त साधनः भजे निधुवने कांतां सा तस्य वशगा भवेत् कृष्ण रस रुक क्षेत्र सोबीरांजन सैधवै पारापत मलोपेतैर्ध्वजे लेपो वशीकर यैः कैश्चिद्रक्त कुसुमैः पंचभिसप्रियगुंभिःर्लिप्तः लिंगो वशीकुर्य्यात् नारीं सौभाग्य गर्वितां तुरंग लाला मंजिष्टा पत्र जाती प्रसूनकै: मकरध्वज पादः स्यात् समालव्धनिजध्वजः रोचना रस काश्मीर हिमहेमरसेन्दुभिः हरे मेहन लोपोयं कामिनीजन मानसं रुक् पारापत विट् विश्व मधुग्रा रोचनां जनैः भवे लिप्त ध्वजः कामी कामिनी मीन केतनः निशा यष्टि मधु क्षौद्र पिपली वृहती फलैः वस्त मूत्रेण वा लिप्तं साधनं वशयेत् स्त्रियः यष्टि कुष्ट कण क्षैद्र वस्त मूत्रै विलेपनं कल्पिते कल्पयेत् लिंगे सर्व स्त्रीजनमोहनं 25252525252525; ··· PSMS ॥ ४८ ॥ 1188 11 ॥ ५० ॥ ॥५१॥ ॥ ५२ ॥ ॥ ५३ ॥ 1148 11 ॥५५॥ ॥ ५६॥ ॥ ५७ ॥ 114611 Popses
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy