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________________ SADORSCISIOSRISTOT5 विधानुशासन BASICISIOTECASICATICISI मंत्रं सिद्धं लक्ष प्रजाप्यतः स्व नाम संयुक्तम, युवेतेर्युनो स्युद्धक फलक द्वंद्वे विलिरवेत् ॥४५॥ इस मंत्र को एक लाख जप करके सिद्ध करके युवति और युवक के नाम को बहेडुक (वेहड़ा) की दो तख्तियों पर लिखे। भूमंडलस्य फलके पुंसो न्यस्यो परिन्यस्य संस्थापोद्गुहादै गुप्ते सातस्या वश्या स्यात् ॥४६॥ पृथ्वी मंडल के अंदर ऊपर की तस्ती पर पुरुष का नाम लिखकर उसे दूसरी तरती के ऊपर रखकर गुफा आदि गुप्त स्थान में रखे तो वह उसके वश में हो जाती है। क्षि AN M MIX पन्नगाधिप शेरवरां विपुलारुणांबुज पिष्टरां कुर्कुटोग वाहनामरुण प्रभां कमलानना ॥४७॥ अंबकां वरदां कुशायत पाश दिव्य फलांकिता चिंतयेत् कमला वती जपतां सतां फलदायिनी ॥४८॥ मस्तक पर नागराज वाली, बड़े भारी लाल कमल के आसन वाली, कुर्कुट नाग के वाहनवाली, लाल कांतिवाली, कमल के समान मुख बाली, तीन नेत्र वाली वरद अंकुश बड़ा पाश और दिव्य फल वाली, तथा ध्यान करने वाले को सदा फल लेने वाली पद्मावती देवी का ध्यान करे। शिलां हिक्का सर श्यामा लोचना रजतःक्षण: वशयेत् तरुणीः सर्वाः स्वामिनं चानु जयेत् ॥४७॥ इस शिला के कारण से श्याम तथा सफेद क्षेत्र वाली सभी स्त्रियाँ वश में होकर अपने स्वामी को प्रसन्न करती हैं। eeeeeíoot වලටees
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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