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________________ 9595257 1 अक्रों तत्परितं ततोष्टदल भृतपद्मं दलेषु क्रमात् श्रीं ह्रीं तद्दल कोटराग्रनिहितं मां ॐ / वहीं ह्रीं त्रिधा ॥ ४३ ॥ ॐ द्रां द्रीं क्लीं ब्लूं सः ऐं श्रीं ह्रीं ब्लें आं क्रों यूं सर्व जन मम वश्य कुरु कुरु वषट् ॥ अष्टोत्तर शतरूप मंत्रेणनेन योजपेन्नित्यं वश्या कृष्टिक्षम द्रावण संमोहनं भवति ।। ४४ ।। कामेद्र (क्रीं) के ऊपर और नीचे त्रिमूर्ति (ह्रीं) लिखकर उसके दोनो तरफ ब्लें बीज लिखे उसके बाहर पाँच बाण लगाकर और उसके अंतराल में भारती बीज (ऐ) और आं क्रों लिखे । उसके बाहर आठ दल का कमल बनाकर प्रत्येक दल में क्रम से बाहर श्रीं और ह्रीं लिखे और प्रत्येक दल के बाहर र्यू और ॐ लिखकर बाहर तीन बार ह्रीं का वेष्टन करे जो पुरुष इस मंत्र का प्रतिदिन १०८ बार जप करता है वह वशीकरण आकर्षण क्षोभ द्रावण और संमोहन करता है। 豆 श्रीं श्रीं RE विधानुशासन PPP 959595 逛建 父 ब्लै नाम ही श्री 日 逃瘼 機 क्ली ह्रीं श्री ट्रॉ श्री ही श्री ॐ यूँ "hand ॐ देवी श्री भूत श्री यक्षि महा यक्षि पद्मावती अमुकं वश मानय मानय ठः ठः 25252525252525....... PISESEISI SPSPSP
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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