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सितार्क मूल रुग यष्टि निजास्नुग्रवीर्य मिश्रितं मुलाग्रसादिनायः स्यात् सध्यो साध्यो न संशयः
मंदार मूलं मंजिष्टा रुजा घटक मस्तकै : स्वशोणितै वंश्यः स्यात् ब्रह्माप्य नादि मिश्रितैः
रुगधतो प्रेत वदने भौते ह्नि विनिवोशिती असितौ वशिया व कर्तुमीश्वारी
नोट:- गुरु आज्ञा न होने कारण इन लोकों का हिंदी अर्थ नहीं किया गया है। कुष्टं स यष्टि मधुकं निक्षिप रजस्वला योन्यां मूत्रेण पेशयित्वा पुंसः खाने प्रयोक्तव्यं
॥ ३१ ॥
॥ ३२ ॥
॥ ३३ ॥
।। ३४ ।।
कनकांपामार्ग बीजैः सित कुष्टैरक्षिका दुग्धैः कृत वटिका चूर्ण मिदं शंकर मघानयैद्वश्यां
॥ ३५ ॥
कनक (धतूरा ) अपामार्ग (आंधी झाड़ा) के बीज सफेद कुष्ट (कूठ ) आक यक्षिका के दूध की गोली बनाकर खिलाने से यह शिवजी को भी वश में करके लाता है।
अंजन सैंधव माक्षिक ताल गुडं स्वैद्रिये युतं भोज्यं पानं वा मिश्रराणितमाशु वश्ये वर्तयेत्साध्यं
॥ ३६ ॥
अंजन सेंधानमक माक्षिक (शहद) ताल (हड़ताल ) गुड़ और अपनी इंद्रिय के वीर्य्य को मिलाकर खिलानेसे या पिलाने से साध्य वश में हो जाता है।
गौरभां चूर्ण युक्तेन युल पाद तलो नरः नवेन जयनीतेन नीयते सहसा वशं
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नवीन (नये) नवनीत (मक्खन) में मिलाकर गोरंभा (गोभी) के चूर्ण का यदि मनुष्य अपने पाँव के तलवों में लेप करे तो वशीकरण करता है अर्थात् (संभोग काल में स्थंभन होने से स्त्री वश में होती है।
पुष्पद्वयं तत् प्रणवादि युक्तं विलाशिनि नाम पदं
तद्न्ते करोतु नारी मदनावतारं ज्ञात्वो पदेशं विधिवदगुरुणं ॥ ३८ ॥
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