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CSCIRCISIOTSIRIDIO5 विधानुशासन 2/505TOISTRICISES
टांतं तत वार्द्ध शशि प्रवेष्टां विलिरट्य यंत्रं फल के वटस्य गोरोचना संयुत कुंकुमायैः साध्यस्य नामारुण चंदनस्य ॥७॥
कत्या ततश्चोभा संपुटं च श्री पार्श्वनाथस्य पुरो निवेश्य
संध्यास नित्यं करवीर पुष्पैभवेदऽवश्य जपतः सुसाध्यं ॥८॥ रलें तत्त्य ही).कट (क्षा और बंद (चंद्रमासे घिरे हाए अपने नाम के बाहर केभाग में अष्ट दल का कमल बनाकर, उसके पत्रों में पद्मावती देवी के मूल मंत्र को लिखकर, उसको आकर्षण पल्लव (संवोषट) से युक्त करके टांत (ठ) और अर्द्ध चंद्रमा से घेरकर इस यंत्र को वड़ वृक्ष की तख्ती पर गोरोधम और कुंकुम आदि से लिये फिर एक दूसरी तख्ती पर साध्य के नाम को लाल चंदन से लिखे तब दोनों का मुख मिलाकर श्री पार्श्वनाथ भगवान के सामने रखे, तीनों संध्याओ में नित्य कनेर के लाल फूलों से जपने से अयश्य सफलता मिलती है।
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संवीषद
माय पण
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मेवौषट
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शन पथ
निगम
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संवीषद
संवीषद
ॐ हीं हैं हस्यानी पद्मे पद्म कटिनि अमुकं मम वश्याकष्टीं कुरु कुरु संवौषट्
भूर्जे सुगंधिना लेख्य यन्नाम च छकरायोः
मध्ये मधु आज्ययोः क्षिप्तं वश्यो भूत्वा स तिष्ठति ॥९॥ CSRIDOROSCIETORIS९९७ PISTRISTRICISTRISTRISES