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वोरनिणिवपरित [२. ३.५सम्वइँ गयाई विहलाई किह ।। किषिणहु मंदिरि वीणाइँ जिह ॥ सञ्चइ-तणएण पवुत्तु हलि । गिरिवर-सुइ वियसिय-मुह-कम लि || वीरहु वीरत्तु ण संचलइ। कि मेरु-मिहरि कथइ ढलइ ॥ इय मणिवि बे वि दिवि गय है । षसहारुढइ रह-रस-स्य है। चेडय-रायहु लय-ललिय-भुय । णिय-पुर-वरि चंदण णाम सुय । गंवणवणि कीड कमल-मुहि ।
जिह जणणि-जणणु ण वि मुणइ सुहि ॥ घत्ता-तिह विलसिय-बम्मीसें णिय केण वि खयरीसें ।
पुणु णिव-परिणि भाएं वणि धझिय सु-विजोएं ॥३॥
णिय-बंधु-विओय-विसण्ण-मइ । तहिं दिट्टी वाहें हंसगइ । धणयत्ते वसहयात वणिहि । ते दिपणी वणिचूडामणिहि ॥ थणिणा णिय-मंदिरिणिहिय सइ । रूवेण णाई पच्चक्न रह । पडिचक्ख-गुणेहि विमस्थिइ । चितिउ तहु पियइ सुहरियह ।। पही कुमारि जइ रमइ वरु। तो पुणु महु दुका होइ घर ॥ एयहि केरउ सहुँ जोव्वणिण । णासमि वररूउ कुभोयणिण । इय भणिवि णियंबिणि रोसवस । घल्लंति भीम-दुव्वयण-कस ॥ कोड्य-करहु सराउ भरि ।। सहुँ कजिएण रस-परिह रिज ।।