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हिन्दी अनुवाद
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छाओंको सिद्ध करनेवाले राजा सिद्धार्थंको रानी भावो जिनेन्द्रकी
माताने निम्नलिखित सोलह स्वप्न देखे
—
१. लीलामय गति से चलते हुए गिरीन्द्र के समान मदोन्मत्त हाथी । २. लटकती हुई सास्नायुक्त (गल-कम्बल) से महान् वृषभ । ३. भोषण सिंह ।
-४, दिव्य अभिषेक-युक्त लक्ष्मी देवो ।
५. उत्तम दो पुष्पमालाएँ ।
६. अन्धकारको दूर करता हुआ चन्द्रमा । ७. किरण जालावलिसे स्फुरायमान सूर्य । ८. सरोवर में चलती हुई दो मछलियाँ | ९, लोक-कल्याण के प्रतीक वन्दनीय दो कलश । की प्रिरोचन |
मिले हुए
(११. छलती हुई तरंगोंको नियन्त्रित करनेवाला समुद्र ।
१२. प्रभासे उज्ववल स्वर्णमय सिंहासन ।
१३. विलासोंसे समृद्ध महानागेन्द्रका प्रासाद |
१४. पवनसे उड़ती हुई ध्वजाओं सहित उत्तम भित्तियोंसे विचित्र सुन्दर और पवित्र इन्द्रभवन |
१५. प्रभासे स्फुरायमान अत्यन्त शोभनीय तथा अन्धकारके समूहको दूर करनेवाला मणिपंन ।
१६. जाज्वल्यमान अग्नि ।
अपने निवासगृह में रात्रि के अन्तिम प्रहरमें इन सोलह स्वप्नोंको देखकर दीर्घनयनी महारानी प्रियकारिणी जाग उठीं, एवं वे वहाँ गयीं जहाँ राजाधिराज सिद्धार्थं विराजमान थे, जिनके चरणोंका घर्षण बड़ेबड़े नरेशोंके शिरपर चूडामणियोंसे किया जाता था। उनसे उनकी प्रिया रानीने अपने स्वप्नोंका फल पूछा । राजाने उनका फल शुभ और श्रेष्ठ बतलाया, और विशेष बात यह कही कि तुम्हारे एक पुत्र होगा जो महादेवोंका देव, महान् वीतराग, अभिमानसे मुफ्त, महावीरोंका वीर, महामोक्षगामी, त्रैलोक्य द्वारा वन्दनीय और त्रिलोकका स्वामी होगा | इन्द्रने कुबेरको आदेश दिया कि राजा सिद्धार्थके प्रासादके प्रांगण में प्रचुर रूपसे निरन्तर वनकी धारावृष्टि होती रहे ||८||
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