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वीरणिणिवपरित
सम-सामयिक थे। उसी कालमैं मगध और वैशाली के राज्यों में बड़ा भारी संग्राम हुआ था जिसमें महाशिला-कंटक वे रथ-मुसल नामक यन्त्र-चालित शस्त्रोंका उपयोग किया गया इत्यादि । सातवें अंग उपासकाध्ययनमें महावीरके जीवनसे सम्बद्ध वैशाली ज्ञात-षण्डवन कोल्लाग सन्निवेश, कर्मारग्राम, वाणिज्यग्राम आदि स्थानोंके ऐसे उल्रदेस प्राप्त है जिनसे उनके स्थान-निर्णयमें सहायता मिलती है। नथें श्रुतांग अनुत्तरीपपालिकमें तीर्थकरके सम-सामयिक मगध-नरेश श्रेणिककी चेलना, धारिणी व नन्दा नामक रानियों तथा उनके तेवीस राजकुमारोंके दीक्षित होनेके उल्लेख है । मूलसूत्र उत्तराव्ययन व दशवकालिकमें महावी रके भूल दार्शनिक, नैतिक व आचारसम्बन्धी विचारोंका विस्तारसे परिचय प्राप्त होता है । कल्पसूत्र में महावीरका व्यवस्थित रीतिसे जीवन-चरित्र मिलता है। मह समस्त साहित्य कालोन अद्भमाया भाषाम है।
शौररोनी प्राकृतमें यतिवृषभ कृत तिलोय-पण्णत्ति ( त्रिलोक-प्रज्ञप्ति ) ग्रन्य बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसमें प्राकृत गायाओंमें हमें तीर्थकरों व अन्य शलाका. पुरुषोंके चरित्र नामावली-निबद्ध प्राप्त होते हैं। इनमें महावीरके जीवन-विषयक प्रायः समस्त बातोंकी जानकारी संक्षेपमें स्मरण रखने योग्य रीतिसे मिल जाती है। ( सोलापुर, १९५२)
इसी नामावली निबद्ध सामग्रीके आधारपर महाराष्ट्री प्राकृत के आदि महाकाव्य पचम-चरियमें महावीरका संक्षिप्त जीवन चरित्र, रामचरित्रकी प्रस्तावनाके रूपमें प्रस्तुत किया गया है । भावनगर, १९१४) । संघदास और धर्मदास गणी कृत वसुदेव-हिण्डी ( ४-५वी शाप्ती) प्राकृत कथा साहित्यका बहुत ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें भी अनेक तीर्थकरोंके जीवन-चरित्र प्रसंगवश आये हैं जिनमें वर्षमान स्वामीका भी है ( भावनगर, १९३०-३१ )। शीलांक कृत च उपन-महापुरिस-चरियं ( वि. सं. ९२५ ) में भी महावीरका जीवन-चरित्र प्राकृत गहामें दणित है ( धाराणसी १९६१ )।
भश्वर कृत कहावलि ( १२वीं शती ) में सभी प्रेमठ शलाकापुरुषोंके चरित्र सरल प्राकृत गद्यमें वर्णित है ( गा. ओ. सी.)1 पूर्णतः स्वतन्त्र प्रबन्ध रूपसे महावीरका चरित्र गुणचन्द्र सूरि द्वारा महावीर-चरियमें वर्णित है ( वि. स, ११३९ ) । इसमें आठ प्रस्ताव है जिनमें प्रथम चारमें महावीरके मरीचि आदि पूर्व भवोंफा विस्तारसे वर्णन है ( बम्बई १९२९) । गुणचन्द्र के ही सम-सामयिक देवेन्द्र अपरनाम नेमिचन्द्र सूरिने भी पूर्णत: प्राकृत पद्यबद्ध महाबीर-चरियकी रचना की ( वि. सं. ११४१ )। इसमें मरीचिसे लेकर महावीर तक छब्बीस भवोंका वर्णन है जिसकी कुल पद्म-संख्या लगभग २४०० है ( भावनगर, वि. सं.