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प्रस्तावना
स्थान भगवान्का ज्ञान-प्राप्ति क्षेत्र स्वीकार करके वहाँ समुचित स्मारक बनाया जाना चाहिए।
११. महावीरवेशना-स्थल
केवलज्ञान प्राप्त करके भगवान् राजगृह पहुँचे, और उस नगरके समीप विपुलाचल पर्वतपर उनका समवसरण बनाया गया। वहीं उनकी दिव्यध्वनि हुई जिसका समय श्रावण कृष्ण प्रतिपदा कहा गया है । इसके अनुसार भगवानका प्रथम उपदेश केवलज्ञान-प्रासिसे ६६ दिन पश्चात् हुआ। यह बात हरिवंशपुराण ( २,६१ आदि ) में निम्न प्रकार पायी जाती है :
पदपष्टिदिवसान भूयो मौनेन विहरन् विभुः । आजगाम जगत् ख्याते जिनो राजगृहं पुरम् ।। आरुरोह गिरि तत्र विपुलं विपुलथियम् । प्रश्नोधार्थ स लोकानां भानुमानुदयं यथा ॥ श्रावणस्यासिते पक्षे नक्षत्रेऽभिजिति प्रभुः ।
प्रतिपद्य हि पूर्वाहे शासनार्थमुदाहरत् ॥ __इस प्रकार विहार राज्य के अन्तर्गत राजगृह नगरके समीप विपुलाचलगिरि ही वह पवित्र और महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है जहाँ भगवान् महावीरका दिव्य शासन प्रारम्भ हुआ। इस पर्वतपर पहलेसे ही अनेक जैन-मन्दिर है, और कोई २५-३० वर्ष पूर्व यहाँ वीर-शासन स्मारक भी स्थापित किया गया था। तबसे वीरशासन-जयन्ती भी श्रावण कृष्णा प्रतिपदाको मनायी जाती है। तथापि उक्त स्मारक और पवित्र दिनको अभीतक वह देशव्यापी प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं हुई जो उनके ऐतिहासिक महत्त्वके अनुरूप हो । इस हेतु प्रयास किये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि यही वह स्थल है जहाँ न केवल भगवान्का धर्म-शासन प्रारम्भ हुआ था, किन्तु उस समपके सुप्रसिद्ध वेद-विज्ञाता इन्द्रभूति गौतमने आकर भगवान्का नायकत्व स्वीकार किया और वे भगवान्के प्रथम गणघर बने । यहीं उन्होंने भगवान्की दिव्यध्व निको अंगों और पूर्वोके रूपमें विभाजित कर उन्हें ग्रन्थारून किया। यहीं मगधनरेश श्रेणिक बिम्बसारने भगवान्का उपदेश सुना और गौतम गणघरसे धर्म-चर्चा करके जैन-पुराणों और कथानकोंकी रचनाकी नींव डाली । यहीं श्रेणिकने ऐसा पुण्यबन्ध किया जिससे उनका अगले मानव जन्ममें महापा नामक तीर्थकर बनना निम्चित हो गया ।