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प्रस्तावना
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१९७३ ) इनसे कुछ ही समय पश्चात् (वि. सं. ११६८ के लगभग ) देवभद्र मणीने भी महावीरचरियंकी रचना की ( अहमदाबाद, १९४५ ) ।
(ज) संस्कृत में महावीर - साहित्य
सस्वार्थसूत्र जैसी सैद्धान्तिक रचनाओं को छोड़ जैन साहित्य सृजनमें संस्कृत भाषाका उपयोग अपेक्षाकृत बहुत पीछे किया गया। हम जानते हैं कि सिद्धसेन दिवाकरने अपनी पाँच स्तुतिमा भगवान् महावीरको ही उद्देशित करके लिखी हैं । आरम्भकालीन काव्यशैली में लिखित जटिल या जटाचार्यके 'बरांगचरित' तथा रविषेणके 'पद्मपुराण' (इ. स. ६७६ ) की ओर संस्कृत जैन साहित्यमें हम निर्देश कर सकते हैं । ये दोनों 'कुवलयमाला' ( ईसाके ७:३९ ) से भी पूर्वकालीन हैं ।) तीर्थकरों के जीवन चरित्र पर महापुराण नामक सर्वाग सम्पूर्ण रचना जिनसेन और उनके शिष्य गुणभद्र द्वारा शक सं. ८२० के लगभग समाप्त की गयी पी। इसके प्रथम ४७ पर्व आदिपुराण के नाम से प्रसिद्ध हैं जिनमें प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव और उनके पुत्र प्रथम चक्रवर्ती भरतका जीवन चरित्र वर्णित है । ४८ से ७६ टक्के पर्व उत्तरपुराण कहलाता है जिसकी पूरी रचना गुणभद्र कृत है । और उसमें शेष तेवीस सीर्थकरों व अन्य कालाकापुरुषोंके जीवनवृत्त हैं। इनमें तीर्थंकर महावीरका चरित्र अन्तिम तीन सगमें ( ७४ से ७६ तक ) सुन्दर पद्योंमें हैं front कुल संख्या ५४९ + ६९१ + ५७८ = १८१८ है (वाराणसी, १९५४ ) । लगभग पौने तीन सौ वर्ष पश्चात् ऐसे ही एक विशाल त्रिषष्टि- शलाका-पुरुषaftant रचना हेमचन्द्राचार्यने १० पर्वो को जिसका अन्तिम पर्व महावीरचरिश्रमिक है ( भावनगर, १९१३) एक महापुरुष चरित स्वोपज्ञ टीका सहित मेरुतुंग द्वारा रचा गया जिसके पाँच सगोंमें क्रमश: ऋषभ, शान्ति, नेमि, rai और महावीरके चरित्र वर्णित है । यह रचना लगभग १३०० ई. की है 1 काव्य की दृष्टिसे शक सं. ९१० में असग द्वारा १८ सर्गों में रचा गया वर्धमान
है ( सोलापूर १९३१ ) । किन्तु यहाँ भी प्रथम सोलह सर्गों में महाबीर के पूर्व भोका वर्णन है और उनका जीवन-वृत्त अन्तिम दो सर्गों में । सकलकीर्तिकृत वर्धमान पुराण में १९ सर्ग हैं और उसकी रचना वि. सं. १५१८ में हुई । पद्मनन्दि, केशव और वाणीवल्लभ द्वारा भी संस्कृतमें महावीर चरित्र लिखे जानेके उल्लेख पाये जाते हैं ।
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( झ ) महावीर - जीवनपर अपभ्रंश साहित्य
समस्व तीर्थकरों व अन्य दालाकापुरुषोंके चरित्र पर अपभ्रंशमें विशाल और श्रेष्ठ तथा सर्व काव्य-गुणोंसे सम्पन्न रचना पुष्पदन्त कृत महापुराण है ( शक सं
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