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प्रस्तावना
१. महावोरके तौर्थक रत्वको पृष्ठभूमि
भगवान् महावीर जैनधर्मके तीर्थकर | किन्तु जैन ऐतिहासिक परम्परासुसार न तो वे जैनधर्मके आदि प्रवर्तक थे और न सदैबके लिए अन्तिम तीर्थंकर । अनादि काल से धर्मके तीर्थंकर होते रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे। उनके द्वारा उपदिष्ट धर्ममें अपने-अपने युगानुसार विशेषताएं भी रहती हैं, और उनके मौलिक स्वरूपमें तालमेल भी बना रहता है। वर्तमान युगके आदि तीर्थंकर
मनाथ माने गये है जिनका उल्लेख न केवल समस्त जैन पुराणोंमें अनिवार्य रूपसे आता है, किन्तु भारतके प्राचीनतम धर्म-ग्रन्थों, जैसे ऋग्वेद आदिमें भी नाना प्रसंगों में आया है ।' उनसे लेकर महावोर तक हुए चौबीस तीर्थंकरों के चरित्र जैन पुराणोंमें विधिवत् वणित पाये जाते हैं । धार्मिक, सैद्धान्तिक व दार्शनिक आदि दृष्टियों से मानो उनमें एकरूपता तथा एक ही आत्माकी व्यासि प्रकट करने के लिए महावीर के पूर्व जन्मकी परम्परा ऋषभदेव से जोड़ी गयी है । ऋषभदेव के पुत्र हुए प्रथम चक्रवर्ती भरत जिनके नामसे इस देशका नाम भी भारतवर्षं पड़ा । यह बात समस्त वैदिक पुराणों में भी प्रायः एकमत से स्वीकार की गयो है । इन्हीं भरतके एक पुत्र थे मरीचि । यह मरीचि भी पूर्व जन्म से आये
१.१० १०२ ६६ १०, १३६, १०, १६६ २, ३३ । भाग. पुराण ५, ६ । विष्णुपुराण ३, १८ आदि। इनमें वृषभ केशी व वातरशन दिगम्बर मुनियों के उल्लेख ध्यान देने योग्य हैं।
२. वमनायोग सूत्र २४६ आदि। कल्पसूत्र । हेमचन्द्रकृत त्रिषष्टि-शलाका-पुरुष-चरित । तिलोय-पति- महाधिकार ४। जिनसेन कृत आदिपुराण गुणभद्र-कृत उत्तरपुराण । पदन्य-कृत महापुराण (अपभ्रंश) ।
इ. भागवत पुराण ५,४,९६ ११, २ । विष्णु पुराण २१, ३१ वायु पुराण ३३, ५२ । अग्नि पुराण १०७, ११-१२ ब्रह्म-पु. १४, ४, ६२ । लिङ्ग-पुराण १, ४७, २३ स्कन्द-पुराण कौंगार-खण्ड ३७ ५७ ॥ मार्कण्डेय पुराण ५०, ४१ । इनमें स्पष्टत: उल्लेख है कि ऋषभ भरत के नामखे दी इस देशका नाम भारतवर्षं पड़ा ।
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