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संधि ११ सेणिय-सुय-गयकुमार-दिक्खा
पेच्छह जिणिद-धम्महो पहाउ । तलिय: मलहमारे सार। अट्ठारह-जल-निह्नि जीवियंति । पुरे रायगेह मगहा जणते । धणसिरियह सेणिय निथ प्रणा । अबइन्नु जयरे नव-जोव्वणाहे ॥ सिबियंतरे देविण दिद? भाउ । पंचमण मासे दोहलउ जाउ ।। पुरि परियायेण सहुँ रह्य-सोहे। आरूहे वि दुरा चल-मायरोहे ।। बरिसंत विमले जले दुद्दिणम्मि । मह उच्छवेण गंपिणु वम्मि ॥ कीलेव अस्थि पियाणुराउ। चिंताविउ तं णिसुणेवि राम ।। सो अभयकुमार चारु-चित्त । पूरविड सरेपिपणु खयरु मित्त ॥ सोहाण-दिणे जण-गण-जणिय हरिसु । उत्पन्नउ धन्नउ पुल-पुरिसु ॥ सिविणण गउ देविश विदछु जेण |
किउ गयकुमार तहो नामु तेण || घत्ता-वदिउ जाउ जुवाणउ सयल-कला-कुसलु ।
मयणु व हवे जिणेसर-पाय-पोम-भसलु ॥१॥