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सन्धि १० श्रेणिक-पुत्र वारिपेणकी योग-साधना
वारिषेणको धार्मिक वृत्ति । विशुच्चर चोरको प्रेयसो गणिकासुन्दरीको
चेलना रानीका हार पानेका उन्माद कुछ समय जानेपर लक्ष्मी द्वारा सेवित चेलनादेवीने वारिषेण नामक पुत्रको जन्म दिया, जो पाप-विनाशक तथा मुणोके निधान हुए। राजगहमें नीतिसे समस्त राजाओंको नीतिके मार्गसे अपने वश में करनेवाले राजा श्रेणिकका यह वारिषेण नामक पुत्र दर्शन, ज्ञान और चारित्र से सम्पन्न पर्वोपवासका पालन करनेवाला प्रसिद्ध हो गया। एक बार वह एक वक्ष धारण किये हुए श्मशानमें रात्रिके समय पाप-विनाशक प्रतिमायोगसे स्थित था। उसी नगरमें लोगोंको त्रास देनेवाला विद्यच्चर नामक चोर रहता था। वह स्तम्भन, मोहन आदि बहुत सी विद्याओंको जानता था, और अंजनसिद्ध (अंजन द्वारा अदृश्य होनेकी कलाका ज्ञाता ) था, जैसे मानो साक्षात् यमराज हो । वह बड़ा साहसी तथा अनेक व्यसनोंके वशीभूत था । इसका प्रेम नगरकी प्रसिद्ध वेश्या गणिकासुन्दरीसे था। एक दिन जब वह अपनी उस प्रेयसीके नेत्रोंको सुखद निवासपर रात्रिके समय गया, तब उसने अपनी उस प्रेयसीको उदासमन देखा, जैसे मानो चन्द्रमाकी चाँदनीसे रहित रात्रि हो। चोरने उसे मनाकर पूछा, हे सुन्दर मुखी, तू बिना कारण मेरे ऊपर रुष्ट क्यों हो गयी है ? इसपर गणिकासुन्दरीने कहा, हे मेरे दुर्लभ वल्लभ, मेरा तुम्हारे