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औरजिनपिउ [ ८ ३.५दुग्गइन्दु ह-पंकनिदाह निणु । विउल इरि पराइउ वीर-जिणु ।।
आयाणवि ए3 धरा-धरणु । तहो देवि सम्व-अंगाहरणु || सहसत्ति कयासण-परिहरणु । पय सत्त सु-विणयालंकरणु ।। परिओसिड तद्दिसि कय-गमणु । जय देव भणेत्रि पसन्न-मणु ॥ एणवेपिणु भू-यलि लुलिय-तणु । भेरी-रव-परिपूरिय-भुषणु ।। सम्मत संगय-सव्व-जणु । गड़ वंदण-त्ति करि व खणु ॥ गच्छंतु संतु संपय-भवणु।
संपत्तउ सेल-समीव-वणु ।। घत्ता-बर-बंस लग-पसंसल
स-करि म-हरि स-बमा स-सिरि । धर-धारउ रयणहिं सारउ
निय-समु राएँ दिछु गिरि ॥३॥
पणवेप्पिणु सम-परिणइ सणाहु । संथु पय-मत्ति-भरेण साहु ।। तेण वि सुह-दुह-गहमाग-हेन । उत्रासिउ धम्माहम्म-भेउ ।। निसुणेप्पिणु सासय-सुह-निहाणु । पडिवन्नर खाइ सहवाणु || जो विहिउ साहु-बह-करणि भाउ । तं सत्तम-निरा निबद्ध आउ ! कट्टिबि त उ निरु निम्मल-मणेण । पुणु बधु पढमि दसण-बलेण ॥ गुरु-संवेगेण मणोहिरामु । एत्यज्जिा पई तित्थयर नामु ।।