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हिन्दी अनुवाद
मुनिको नमन किया। वे भगवान् मुनि तो शत्रु और मित्र के प्रति समदृष्टि रखते थे | उन्होंने राजाको उपशान्तमन हुए जानकर पुण्यप्रकाशी उत्तम भाषामें आशीर्वादका उच्चारण किया ॥१॥
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श्रेणिक राजा जैन शासन के भक्त बनकर राजधानी में लौटे
राजा श्रेणिकने यशोधर मुनिसे दुष्कृत कर्मरूपी ईंधनको जलाने वाले अग्नि के समान अनेक प्रकारका धर्मं श्रवण किया। मुनिके उन अनुपम वचनोंको सुनकर राजाने बारम्बार अपने आपकी निन्दा की 1 वे अब जिनशासनमें लीन-मन हो गये और उन्होंने आर्थिक सम्यक् दर्शनका लाभ प्राप्त किया। आकाशमें देवोंने उनका अभिनन्दन किया । इससे राजाको और भी अधिक आनन्द हुआ। फिर उन श्रमणमुनि यशोधरको वन्दना करके राजा अपने भवनमें लौट आये। वे अब अपने मनसे मिध्या मतोंको दूर छोड़कर सज्जनोंका पालन करते हुए, सुखपूर्वक राज्य करने लगे । चेलना महादेवी के साथ वे सीताके साथ रामके सदृश अलंकृत दृष्टिगोचर होते थे । एक दिन जब वे नर-समूहसे भरे हुए अपने सभा भवनमें बैठे थे, तभी बनपालने आकर और हाथ जोड़कर विनती की कि हे महाराज, देवों और मनुष्यों द्वारा नमित, ज्ञान- दिवाकर, देवोंके देव, परमेश्वर महावीरका आगमन हुआ है ||२||
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महावीरके विपुलाचलपर आनेकी सूचना और श्रेणिकका उनकी वन्दना हेतु गमन
बनपालने कहा - हे स्वामी, त्रिलोकके लोगों के शरणभृत इन्द्र द्वारा जिनके समोरगकी रचना की जाती है, जिन्होंने दुर्जय काम और कषायके रणको जीत लिया है, जन्म-जरा और मृत्युको दूर कर दिया है
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