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६.५.२८ ]
हिन्दी अनुवाध
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उसकी आँखें निकाल ली। उसने बड़ी-बड़ी मुण्डों वाले कीटोंके द्वारा उसके शरीरको चलनीके समान बेच डाला। ऐसी प्राणान्तकारी महान् दुःखकी वेदनाको सहकर भी समाधिमें तल्लीन रहकर चिलातपुत्र मृनि निरन्तर सुखदायी पंचअनुत्तर विमानों में से सिद्धिविमान में अहमिन्द्र देव हुए ||५||
इति विलातपुत्र- परीषह विषयक छठी सन्धि समाप्त ॥ सन्धि ६ ॥