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चोरजिदिचरिउ
हूई अंतरि तहि जिवणंतरे । अपणु पाण भए दु-संचरे ॥ चडि पलाऊ गरुयारण व्यमि पावणे व भार ||
बत्ता - मुदितु भडारउ भव-भय-हारराव सह संघेय नियच्छिय |
भय-वेविर गत्ते पाव-विरते
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तेण नवेपणु पुछिउ |४||
कहि कहि साहु किंपि संखेवें । सासु कहिउ जो देवें ॥ ता वसु तासु सुहयारउ । कहिल रिसीसे सब सारख ॥ जं इच्छसि तं नेच्छ
अं पुण नेच्छसि तुमं पुरिस-सीह | तं इन्सु जइ इच्छसि
संसार-महन्नवं तरिढुं ।। चियाइय पर भाव विसज्जहि । निव्विसाइयनिय पविजहि ॥ सुणेवि एवं निब्वेएँ लइयउ । संखेवेण जे सो पव्वइयउ ॥ आयala stars विसेसें । थिउ पाउग्ग-मरणे संतोसें ॥ ता सेणिउस से तत्थाय उ । भाइ निपनि साहु संजायत || चंग कियउपसंस करेष्पिणु ॥
अंचेवि पुजेवि पणवेपिशु ॥ एत्यंतर अंतरिए निहालिङ । बइर बसान तान खम्भालिन || प्राणत्यो सबलियन हवेषिणु । कङ्क्षिय लोण सिरि वइसेष्पिणु ॥
[ ६.४.१३