________________
सन्धि६ चिलातपुत्र-परीपह-सहन
चिलातपुत्रका जन्म उज्जंगुलि ( काकी ) ने आकर सर्वांग चालिनीके समान छेद डाला, तो भी धीर मनस्वी चिलातपुत्र श्रमण अपने निर्दोष तपस्या-कार्यसे विचलित नहीं हुए । प्राचीन कालमें मगध देशमें गुणवान्-गुनहिल ( गुणधीर ) नामक सार्थबाह बणिक रहता था। एक दिन वह अपने सार्थ सहित बनमार्गमें गमन कर रहा था, तभी एक ग्राममें उसने भिक्षाके लिए आये हुए तपधर नामक कामविजयी मुनिको देखा । वणिक्के पास उस समय कोई सिद्ध अन्न नहीं था, अतएव उसने उन समभावी मुनिको गुड़ और तिलपट्टी देकर आहार कराया। इस पायदानके फलस्वरूप वह मरने पर प्रथम द्वीप अर्थात् जम्बुद्वीपके शोभायमान हेमवत् नामक क्षेत्रमें एक कोश-प्रमाण शरीरयुक्त व पल्योपमकाल तक जीवित रहनेवाला मानव उत्पन्न हुआ। फिर वह नन्दन वनमें देव हुआ और वहाँसे च्युत होकर मगधमण्डल के राजगृह नगरमें राजा प्रश्रेणिकका चिलातदेवी द्वारा उत्पन्न तथा रूपसे लोगोंके मन और नयनोंको आनन्ददायी चिलातपुत्र नामक राजकुमार हुआ। एक दिन राजा प्रधेणिवाने क्रुद्ध होकर राजपुत्र उदायनको यह आदेश देकर उज्जयिनीपुरीको भेजा कि वहाँके राजा प्रद्योतको युद्ध में जीतकर और बन्धनोंसे बांधकर मेरे पास ले आओ ||१||