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वीर जिणिचरिउ
पंचक्खर हूँ चितिं विज्झाय | धम्म-माणु णिम्मलु उपाय || वियलिय जिस उगमिड पयंगड । वायरु एक पत्तु सामंग ॥ नामें कालु तासु जिण वयण हूँ । साहियाई मुद्ध जग-सयण हूँ ।। अणु तिहु दिई आहरणहुँ । पहत दियर किरण हूँ | से तुझें यि सुंदरि तेत्तहिं । भीम - सिहर - गिरि - णियड जेनहिं ॥ भिल्लू भयंकरि पल्लिहि राणउ । नामें सीहु सीहु-रस- जाणउ ॥ तासु बाल काले समप्पिय । तेण वि कामाला विलुपिय ॥ का थिय परमेसरि | जा लगइ वणयरु वण-केसरि ॥ ता सो रुक्खु जेब उम्मूलिउ । सासण- देवयाहिं पडिकूलिङ || रे चिलाय करु सुमि होयहि । अप्पर काल वयम शिवायहि ॥ ता सो तसिउ थक्कु तुण्डिकउ । पत्र- जुय वडिउ विचार-विमुक्कउ || कंद-मूल-फल-दाबिय-साथइ । पोसिय देवि विसाय माय ॥ श्रिय इव दिणा हूँ तहिं जयहुँ । वच्छ देसि 'कोसंविद्दि तइयहुँ । सहस्रेणु वणिव धणइत्तउ । मित्तीक तहुर्किकस भत्तउ ॥ मित्तु सो जिसीहहु वण-गाहहु ॥ घरु आयउ सुष्टिय जलवाहुहु ॥ अपि तासु तेण पत्थिव सुय । बाल- मुणाल-बलय- कोमल-भुय ||
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