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संधि चंदणा-तवगणं
पभणइ महियल-णाहु गय-मिच्छत्त-तमंधहि ।। अणु चंदगाह भवाई सुरहिय-चंदण-गंधहि ।। संघिसुगेविण मास गुणिया । सुणि सेणिय अक्खमि तुह घइयरु ।। सिंधु-विसइ वइसाली-पुरवरि । घर-सिरि-ओहामिय-सुर-वर-घरि ।। चेड़उ णाम णरेसरु णिवसइ । देवि अखुद सुहद्द महासइ ।। धणयत्त धणभदु उविंदउ | सुहयत्तउ हरियत्तु णियंगउ || कंभोयउ कंपणउ पयंगउ। अवर पहंजणु पुत्तु पहासा ।। धीयउ सत्त रूवाघिण्णासउ ।। सेयंसिणि सूहव पियकारिणि । अवर मिगावइ जण-मण-हारिणि ।। सुप्पह देवि पहावइ चेलिणि । बाल-मराल-लील-गइनगामिणि ।। जेह विसिह भडारी चंदण। रूव-रिद्धि-रजिय-संकंदण ।। पियकारिणि वर-माह-कुलेसहु । सिद्धत्थहु कुडउर-परेसहु || दिपण सयाणीयस्स मिगावइ । सोम-वंस-रायहु मंथरगइ ।। सूर-वंस-जायहु ससि-यर-गह । दसरह-रायगु दिपणी सुष्पह ॥