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बोरनिणिवचरिज [२, ८.११जाणा-विहोय-जिय-सुरई । विहरेप्पिणु वेड गामपुरई। सम्मत्त धोय-मिच्छा-मलई । संबोहिवि भव-जीव-कुलई॥ विहरंतु वसुछ विद्वत्थरह । विउलहरि पाउ भुनमनः ।। आवेपिपणु 'दुह-णिण्णास-यरू । सेणिय पई वंदिउ तित्थयरू || पुच्छियउ पुराणु महंतु पई।
भासियउ असेसु वि तुज्झु मई ।। घत्ता-णिसुणिवि गोत्तममासियं भरहाणंद-विहूसियं ।।
संबुद्धा विसहर-णरां पुष्फयंत-जोईसरों ॥८il
ह्य वीरजिणिवचरिए केवलणाणुष्पत्तिवपणणो णाम
विदियो सन्धी ॥२॥